अथ चौरासी सिद्ध चालीसा – गोरखनाथ मठ (Ath Chaurasi Siddh Chalisa)

पर Akhilesh Gupta द्वारा प्रकाशित

अथ चौरासी सिद्ध चालीसा - गोरखनाथ मठ

चौरासी सिद्ध चालीसा नाथ योगियों द्वारा रचित एक स्तुति है। यह उन 84 सिद्धों का आह्वान करती है जिन्होंने आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त की हैं। इस प्रार्थना के द्वारा भक्तगण सिद्धों के साथ दिव्य संबंध बनाकर आशीर्वाद पाते हैं।

दोहा –
श्री गुरु गणनायक सिमर,
शारदा का आधार ।कहूँ सुयश श्रीनाथ का,
निज मति के अनुसार ।

श्री गुरु गोरक्षनाथ के चरणों में आदेश ।
जिनके योग प्रताप को ,
जाने सकल नरेश ।

चौपाई
जय श्रीनाथ निरंजन स्वामी,
घट घट के तुम अन्तर्यामी ।

दीन दयालु दया के सागर,
सप्तद्वीप नवखण्ड उजागर ।

आदि पुरुष अद्वैत निरंजन,
निर्विकल्प निर्भय दुःख भंजन ।

अजर अमर अविचल अविनाशी,
ऋद्धि सिद्धि चरणों की दासी ।

बाल यती ज्ञानी सुखकारी,
श्री गुरुनाथ परम हितकारी ।

रूप अनेक जगत में धारे,
भगत जनों के संकट टारे ।

सुमिरण चौरंगी जब कीन्हा,
हुये प्रसन्न अमर पद दीन्हा ।

सिद्धों के सिरताज मनावो,
नव नाथों के नाथ कहावो ।

जिनका नाम लिये भव जाल,
आवागमन मिटे तत्काल ।

आदि नाथ मत्स्येन्द्र पीर,
घोरम नाथ धुन्धली वीर ।

कपिल मुनि चर्पट कण्डेरी,
नीम नाथ पारस चंगेरी ।

परशुराम जमदग्नी नन्दन,
रावण मार राम रघुनन्दन ।

कंसादिक असुरन दलहारी,
वासुदेव अर्जुन धनुधारी ।

अचलेश्वर लक्ष्मण बल बीर,
बलदाई हलधर यदुवीर ।

सारंग नाथ पीर सरसाई,
तुङ़्गनाथ बद्री बलदाई ।

भूतनाथ धारीपा गोरा,
बटुकनाथ भैरो बल जोरा ।

वामदेव गौतम गंगाई,
गंगनाथ घोरी समझाई ।

रतन नाथ रण जीतन हारा,
यवन जीत काबुल कन्धारा ।

नाग नाथ नाहर रमताई,
बनखंडी सागर नन्दाई ।

बंकनाथ कंथड़ सिद्ध रावल,
कानीपा निरीपा चन्द्रावल ।

गोपीचन्द भर्तृहरी भूप,
साधे योग लखे निज रूप ।

खेचर भूचर बाल गुन्दाई,
धर्म नाथ कपली कनकाई ।

सिद्धनाथ सोमेश्वर चण्डी,
भुसकाई सुन्दर बहुदण्डी ।

अजयपाल शुकदेव व्यास,
नासकेतु नारद सुख रास ।

सनत्कुमार भरत नहीं निंद्रा,
सनकादिक शारद सुर इन्द्रा ।

भंवरनाथ आदि सिद्ध बाला,
ज्यवन नाथ माणिक मतवाला ।

सिद्ध गरीब चंचल चन्दराई,
नीमनाथ आगर अमराई ।

त्रिपुरारी त्र्यम्बक दुःख भंजन,
मंजुनाथ सेवक मन रंजन ।

भावनाथ भरम भयहारी,
उदयनाथ मंगल सुखकारी ।

सिद्ध जालन्धर मूंगी पावे,
जाकी गति मति लखी न जावे ।

ओघड़देव कुबेर भण्डारी,
सहजई सिद्धनाथ केदारी ।

कोटि अनन्त योगेश्वर राजा,
छोड़े भोग योग के काजा ।

योग युक्ति करके भरपूर,
मोह माया से हो गये दूर ।

योग युक्ति कर कुन्ती माई,
पैदा किये पांचों बलदाई ।

धर्म अवतार युधिष्ठिर देवा,
अर्जुन भीम नकुल सहदेवा ।

योग युक्ति पार्थ हिय धारा,
दुर्योधन दल सहित संहारा ।

योग युक्ति पंचाली जानी,
दुःशासन से यह प्रण ठानी ।

पावूं रक्त न जब लग तेरा,
खुला रहे यह सीस मेरा ।

योग युक्ति सीता उद्धारी,
दशकन्धर से गिरा उच्चारी ।

पापी तेरा वंश मिटाऊं,
स्वर्ण लङ़्क विध्वंस कराऊँ ।

श्री रामचन्द्र को यश दिलाऊँ,
तो मैं सीता सती कहाऊँं ।

योग युक्ति अनुसूया कीनों,
त्रिभुवन नाथ साथ रस भीनों ।

देवदत्त अवधूत निरंजन,
प्रगट भये आप जग वन्दन ।

योग युक्ति मैनावती कीन्ही,
उत्तम गति पुत्र को दीनी ।

योग युक्ति की बंछल मातू,
गूंगा जाने जगत विख्यातू ।

योग युक्ति मीरा ने पाई,
गढ़ चित्तौड़ में फिरी दुहाई ।

योग युक्ति अहिल्या जानी,
तीन लोक में चली कहानी ।

सावित्री सरसुती भवानी,
पारबती शङ़्कर सनमानी ।

सिंह भवानी मनसा माई,
भद्र कालिका सहजा बाई ।

कामरू देश कामाक्षा योगन,
दक्षिण में तुलजा रस भोगन ।

उत्तर देश शारदा रानी,
पूरब में पाटन जग मानी ।

पश्चिम में हिंगलाज विराजे,
भैरव नाद शंखध्वनि बाजे ।

नव कोटिक दुर्गा महारानी,
रूप अनेक वेद नहिं जानी ।

काल रूप धर दैत्य संहारे,
रक्त बीज रण खेत पछारे ।

मैं योगन जग उत्पति करती,
पालन करती संहृति करती ।

जती सती की रक्षा करनी,
मार दुष्ट दल खप्पर भरनी ।

मैं श्रीनाथ निरंजन दासी,
जिनको ध्यावे सिद्ध चौरासी ।

योग युक्ति विरचे ब्रह्मण्डा,
योग युक्ति थापे नवखण्डा ।

योग युक्ति तप तपें महेशा,
योग युक्ति धर धरे हैं शेषा ।

योग युक्ति विष्णू तन धारे,
योग युक्ति असुरन दल मारे ।

योग युक्ति गजआनन जाने,
आदि देव तिरलोकी माने ।

योग युक्ति करके बलवान,
योग युक्ति करके बुद्धिमान ।

योग युक्ति कर पावे राज,
योग युक्ति कर सुधरे काज ।

योग युक्ति योगीश्वर जाने,
जनकादिक सनकादिक माने ।

योग युक्ति मुक्ती का द्वारा,
योग युक्ति बिन नहिं निस्तारा ।

योग युक्ति जाके मन भावे,
ताकी महिमा कही न जावे ।

जो नर पढ़े सिद्ध चालीसा,
आदर करें देव तेंतीसा ।

साधक पाठ पढ़े नित जोई,
मनोकामना पूरण होई ।

धूप दीप नैवेद्य मिठाई,
रोट लंगोट को भोग लगाई ।

दोहा –
रतन अमोलक जगत में,
योग युक्ति है मीत ।

नर से नारायण बने,
अटल योग की रीत ।

योग विहंगम पंथ को,
आदि नाथ शिव कीन्ह ।

शिष्य प्रशिष्य परम्परा,
सब मानव को दीन्ह ।

प्रातः काल स्नान कर,
सिद्ध चालीसा ज्ञान ।

पढ़ें सुने नर पावही,
उत्तम पद निर्वाण ।

नमस्कार दोस्तों! क्या आप आध्यात्मिक शक्ति और गुरु गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से अपने जीवन को बदलना चाहते हैं? यदि हाँ, तो आज हम एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र के बारे में बात करेंगे – चौरासी सिद्ध चालीसा। इस शक्तिशाली प्रार्थना के नियमित पाठ से साधक सिद्धियों की प्राप्ति कर सकते हैं और जीवन में असीम कृपा का अनुभव कर सकते हैं।

भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में, चौरासी सिद्ध उन महान योगियों को कहा जाता है जिन्होंने असाधारण आध्यात्मिक शक्तियों या सिद्धियों को प्राप्त किया है। माना जाता है कि इन सिद्ध पुरुषों ने अपनी गहन साधना द्वारा भौतिक जगत की सीमाओं को पार कर लिया था। चौरासी सिद्ध चालीसा में इन्हीं सिद्ध पुरुषों का आह्वान कर उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना की जाती है।

चौरासी सिद्ध चालीसा विशेष रूप से नाथ योग परंपरा से जुड़ा हुआ है, जिसके प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ हैं। गोरखनाथ मठ, जो गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में स्थित है, इस परंपरा का प्रमुख केंद्र है। गोरखनाथ मठ की वेबसाइट पर चौरासी सिद्ध चालीसा की पाठ सामग्री उपलब्ध है।

चौरासी सिद्ध चालीसा अपने आप में एक पूर्ण साधना है। जो भक्त श्रद्धा और विश्वास से इस चालीसा का पाठ करते हैं, उन्हें निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  • सिद्धियों की प्राप्ति: इस चालीसा को सिद्धि प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। अष्ट सिद्धि और नव निधि की प्राप्ति के लिए भक्त इस चालीसा का पाठ करते हैं।
  • गुरु गोरखनाथ का आशीर्वाद: चौरासी सिद्ध चालीसा के पाठ से भक्तों पर गुरु गोरखनाथ जी की विशेष कृपा बरसती है।
  • मनोकामनाओं की पूर्ति: इसके पाठ से श्रद्धालुओं की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
  • संकटों से मुक्ति: चौरासी सिद्ध चालीसा का जाप भक्तों को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है और जीवन में आने वाले संकटों से रक्षा करता है।

चौरासी सिद्ध चालीसा का पाठ करने के लिए कुछ सरल नियमों का पालन किया जा सकता है:

  1. समय: प्रातःकाल या सूर्यास्त के समय चालीसा का पाठ करना अधिक लाभकारी होता है।
  2. स्थान: चौरासी सिद्ध चालीसा का पाठ स्वच्छ एवं शांत स्थान पर करना उत्तम माना गया है। घर का पूजा स्थान या मंदिर इसके लिए आदर्श स्थान हो सकते हैं।
  3. आसन: सुखासन या पद्मासन में बैठकर पाठ करें।
  4. संकल्प: पाठ के आरंभ में अपना संकल्प बोलें – आप किस उद्देश्य से चालीसा का पाठ कर रहे हैं।
  5. भाव: श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ चालीसा का पाठ करें।
  • शांत और स्वच्छ स्थान
  • चौकी या आसन
  • दीपक
  • अगरबत्ती
  • फूल
  • फल
  • नैवेद्य
  • चौरासी सिद्ध चालीसा की पुस्तक
  • गंगाजल
  • चावल
  • सिंदूर
  • हल्दी
  • कुमकुम
  • मोली
  • फल
  • मीठा पान
  • दक्षिणा
  • घंटा
  • शंख
  • मंजीरा
  • धूप
  • आरती सामग्री
  • इस चालीसा के नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ से भक्तों के जीवन में चमत्कारिक बदलाव आते हैं।
  • चौरासी सिद्ध चालीसा का सस्वर पाठ करने से चित्त को शांति मिलती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • यह पाठ गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को भी रेखांकित करता है। गुरु की कृपा के बिना आध्यात्मिक मार्ग में प्रगति संभव नहीं है।


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