श्री गोरक्ष चालीसा – गोरखनाथ मठ (Goraksh Chalisa)

पर Akhilesh Gupta द्वारा प्रकाशित

नमस्कार दोस्तों, क्या आप भी गुरु गोरखनाथ जी के आशीर्वाद को पाना चाहते हैं? क्या आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव चाहते हैं? जी हाँ, तो श्री गोरक्ष चालीसा का पाठ अवश्य करें, जो एक अत्यंत शक्तिशाली भक्ति स्तोत्र है। आइए, आज हम इस चालीसा की महिमा, इसके पाठ की विधि, और इसके पीछे की कथा के बारे में चर्चा करते हैं।

श्री गोरक्ष चालीसा नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ जी को समर्पित एक भक्ति स्तोत्र है। इसकी रचना संस्कृत भाषा में की गई है। इसमें 40 छंद या चौपाइयां हैं, इसलिए इसे चालीसा कहा जाता है। इस चालीसा के नियमित पाठ से भक्तों को गुरु गोरखनाथ जी का आशीर्वाद और उनसे मिलने वाली अपार शांति का अनुभव होता है।

दोहा-
गणपति गिरिजा पुत्र को,
सिमरूँ बारम्बार ।
हाथ जोड़ विनती करूँ,
शारद नाम अधार । ।चौपाई-
जय जय जय गोरख अविनाशी,
कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी ।
जय जय जय गोरख गुणज्ञानी,
इच्छा रूप योगी वरदानी । ।
अलख निरंजन तुम्हरो नामा,
सदा करो भक्तन हित कामा ।
नाम तुम्हारा जो कोई गावे,
जन्म जन्म के दुःख नशावे ।
जो कोई गोरक्ष नाम सुनावे,
भूत पिशाच निकट नहीं आवे ।
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे,
रूप तुम्हार लख्या ना जावे ।
निराकार तुम हो निर्वाणी,
महिमा तुम्हरी वेद बखानी ।
घट घट के तुम अन्तर्यामी,
सिद्ध चौरासी करें प्रणामी ।
भस्म अङ्ग गले नाद विराजे,
जटा सीस अति सुन्दर साजे ।

तुम बिन देव और नहीं दूजा,
देव मुनी जन करते पूजा ।
चिदानन्द सन्तन हितकारी,
मङ़्गल करे अमङ़्गल हारी ।
पूरण ब्रह्म सकल घट वासी,
गोरक्षनाथ सकल प्रकासी ।
गोरक्ष गोरक्ष जो कोई ध्यावे,
ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ।
शङ़्कर रूप धर डमरू बाजे,
कानन कुण्डल सुन्दर साजे ।
नित्यानन्द है नाम तुम्हारा,
असुर मार भक्तन रखवारा ।
अति विशाल है रूप तुम्हारा,
सुर नर मुनि जन पावं न पारा ।
दीन बन्धु दीनन हितकारी,
हरो पाप हम शरण तुम्हारी ।
योग युक्ति में हो प्रकाशा,
सदा करो सन्तन तन वासा ।
प्रातःकाल ले नाम तुम्हारा,
सिद्धि बढ़े अरु योग प्रचारा ।
हठ हठ हठ गोरक्ष हठीले,
मार मार वैरी के कीले ।
चल चल चल गोरक्ष विकराला,
दुश्मन मान करो बेहाला ।
जय जय जय गोरक्ष अविनासी,
अपने जन की हरो चौरासी ।
अचल अगम हैं गोरक्ष योगी,
सिद्धि देवो हरो रस भोगी ।
काटो मार्ग यम की तुम आई,
तुम बिन मेरा कौन सहाई ।
अजर अमर है तुम्हरो देहा,
सनकादिक सब जोहहिं नेहा ।
कोटि न रवि सम तेज तुम्हारा,
है प्रसिद्ध जगत उजियारा ।
योगी लखें तुम्हारी माया,
पार ब्रह्म से ध्यान लगाया ।
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे,
अष्ट सिद्धि नव निधि घर पावे ।
शिव गोरक्ष है नाम तुम्हारा,
पापी दुष्ट अधम को तारा ।
अगम अगोचर निर्भय नाथा,
सदा रहो सन्तन के साथा ।
शङ़्कर रूप अवतार तुम्हारा,
गोपीचन्द भर्तृहरि को तारा ।
सुन लीजो गुरु अरज हमारी,
कृपा सिन्धु योगी ब्रह्मचारी ।
पूर्ण आस दास की कीजे,
सेवक जान ज्ञान को दीजे ।
पतित पावन अधम अधारा,
तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ।
अलख निरंजन नाम तुम्हारा,
अगम पंथ जिन योग प्रचारा ।
जय जय जय गोरक्ष भगवाना,
सदा करो भक्तन कल्याना ।
जय जय जय गोरक्ष अविनाशी,
सेवा करें सिद्ध चौरासी ।
जो पढ़ही गोरक्ष चालीसा,
होय सिद्ध साक्षी जगदीशा ।
बारह पाठ पढ़े नित्य जोई,
मनोकामना पूरण होई ।
और श्रद्धा से रोट चढ़ावे,
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे ।

दोहा –
सुने सुनावे प्रेमवश,
पूजे अपने हाथ
मन इच्छा सब कामना,
पूरे गोरक्षनाथ ।
अगम अगोचर नाथ तुम,
पारब्रह्म अवतार ।
कानन कुण्डल सिर जटा,
अंग विभूति अपार ।
सिद्ध पुरुष योगेश्वरों,
दो मुझको उपदेश ।
हर समय सेवा करूँ,
सुबह शाम आदेश ।

श्री गोरक्ष चालीसा हिंदू धर्म और योग परंपरा की एक अनमोल धरोहर है। यह विशेष रूप से गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में स्थित गोरखनाथ मठ से जुड़ा हुआ है।

गुरु गोरखनाथ या गोरक्षनाथ नाथ परंपरा के संस्थापक और महान योगी थे। उन्हें भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। मध्यकालीन भारत में नाथ योगियों ने धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। गुरु गोरखनाथ जी द्वारा रचित कई ग्रन्थ हिंदू धर्म के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

श्री गोरक्ष चालीसा कई कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है:

  • गुरु कृपा: गोरक्ष चालीसा के पाठ से भक्तों पर गुरु गोरखनाथ जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • मनोकामना पूर्ति: इस चालीसा को नियमित रूप से पढ़ने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  • संकट से रक्षा: यह चालीसा भक्तों की रक्षा करता है और उन्हें जीवन के संकटों से पार लगाता है।
  • आध्यात्मिक मार्ग में सहायक: यह चालीसा साधकों को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होने में मदद करती है।

श्री गोरक्ष चालीसा का पाठ एक सरल किन्तु भक्तिमय तरीके से किया जा सकता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं:

  1. समय: यदि संभव हो तो प्रातःकाल में स्नान के बाद श्री गोरक्ष चालीसा का पाठ करें।
  2. स्थान: स्वच्छ और शांत स्थान पर बैठ कर चालीसा का पाठ करें।
  3. आसन: सुखासन या कमल आसन में बैठना उत्तम है।
  4. पूजा सामग्री: पूजा के समय दीप, अगरबत्ती, फूल, फल आदि रखें।
  5. पाठ करते समय: ध्यानपूर्वक तथा श्रद्धा भाव से इस चालीसा का पाठ करें।

इस चालीसा का पाठ करने वाले भक्तों को अद्भुत लाभ मिलते हैं:

  • जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  • दुखों का नाश होता है।
  • रोगों और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है।
  • भक्त का आत्मबल बढ़ता है।
  • भक्त को गुरुजनों का सानिध्य प्राप्त होता है।
  • स्वच्छ एवं शांत स्थान: एक समर्पित पूजा स्थान, मंदिर, या अपने घर में एक शांत जगह चुनें।
  • चौकी (छोटा मंच या टेबल): पवित्र ग्रंथ और प्रसाद को रखने के लिए।
  • गुरु गोरखनाथ जी की छवि या मूर्ति (वैकल्पिक, लेकिन अनुशंसित):
  • दीया: शुद्धता और अंधकार को दूर करने का प्रतीक है।
  • अगरबत्ती: सुगन्धित और पवित्र वातावरण के लिए।
  • फूल: सुंदरता और भक्ति के प्रतीक के रूप में।
  • फल: बहुतायत और पोषण का प्रतीक।
  • नैवेद्यम (प्रसाद): देवता के लिए एक सरल, मीठा प्रसाद।
  • गंगाजल: शुद्धिकरण के लिए।
  • अक्षत (चावल): समृद्धि और बहुतायत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • चंदन का लेप: पवित्र तिलक लगाने के लिए।
  • कुमकुम या रोली: पवित्र तिलक लगाने के लिए।
  • जनेऊ: यदि इच्छा हो, तो देवता को अर्पित करने के लिए।
  • घंटी: दिव्य उपस्थिति का आह्वान करने के लिए।
  • आरती की थाली: पूजा के समापन पर आरती करने के लिए।
  1. पूजा स्थान को साफ करके व्यवस्थित करें।
  2. चौकी पर गोरक्ष चालीसा का पाठ रखें।
  3. फूल, फल और नैवेद्य अर्पित करें।
  4. दीया और अगरबत्ती जलाएं।
  5. यदि उपलब्ध हो, तो शुद्धिकरण के लिए गंगाजल छिड़कें।

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