फूलदेई (Phool Dei): रंगों और खुशियों का त्योहार
फूलदेई: उत्तराखंड के बच्चों का खास पर्व
नमस्कार दोस्तों! चैत्र के महीने में पूरा उत्तराखंड रंग-बिरंगे फूलों से सज उठता है। जैसे प्रकृति भी इस सुंदर पहाड़ी राज्य के उत्साह में शामिल हो रही हो! इसी खूबसूरत मौसम में आता है फूलदेई का त्योहार। फूलदेई उत्तराखंड के बच्चों का एक ख़ास पर्व है! आइए, जानते हैं इस अनूठी परंपरा के बारे में
फूलदेई का अर्थ:
इसका अर्थ है “फूलों से भरी दहलीज़”। इस दिन उत्तराखंड के गांव-गांव में बच्चे घरों की दहलीज को अलग-अलग फूलों के रंगों से सजाते हैं।
फूलदेई से जुड़ा प्रसिद्ध लोक गीत
“फूल देई, छम्मा देई, दैणी द्वार भर भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार, फूल देई…”
इसका अर्थ है: भगवान, हमारे घरों में समृद्धि लाएं, हमारा भंडार धन-धान्य से भरा रहे, यह प्रार्थना हम आपसे बार-बार करते हैं।
कब आती है फूलदेई?
उत्तराखंड में फूलदेई हिन्दू नववर्ष यानी चैत्र मास की पहली तिथि (प्रतिपदा) को मनाई जाती है। इसे चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है। चूंकि, हिंदु पंचांग का पहला महीना चैत्र ही होता है, इसलिए फूलदेई को उत्तराखंड के नये साल का उत्सव भी माना जाता है।
तिथि और मुहूर्त
मुहूर्त:
- शुभ मुहूर्त: 13 मार्च 2024, सुबह 6:28 बजे से 8:57 बजे तक
- अभिजित मुहूर्त: 13 मार्च 2024, दोपहर 12:05 बजे से 12:51 बजे तक
- विजय मुहूर्त: 13 मार्च 2024, दोपहर 2:38 बजे से 3:24 बजे तक
- गोधूलि मुहूर्त: 13 मार्च 2024, शाम 6:23 बजे से 6:50 बजे तक
फूलदेई कैसे मनाई जाती है?
- बच्चे सुबह-सुबह अलग-अलग तरह के जंगली फूल इकट्ठा करते हैं।
- गाते हुए, वे घर-घर जाकर देहरी पर रंग-बिरंगे फूल, चावल, और फल चढ़ाते हैं। उन्हें बदले में मिठाई और अन्य उपहार मिलते हैं।
- बच्चे फूल चढ़ाते समय लोकगीत गाते हैं, जिससे घर में खुशहाली आए।
- इस दिन कुछ लोग उपवास भी रखते हैं।
फूलदेई का महत्व
इस पर्व से अनेक महत्व जुड़े हैं:
- प्रकृति से लगाव: उत्तराखंड के पहाड़ों में रहने वाले लोग प्राकृतिक सौन्दर्य से बहुत अच्छी तरह जुड़े हुए होते हैं। इस पर्व से बच्चों में भी प्रकृति के प्रति प्रेम बढ़ता है।
- आशीर्वाद और सकारात्मकता: बच्चों द्वारा दिये गए आशीर्वाद से घर में सुख और समृद्धि आती है।
- बच्चों का त्योहार: फूलदेई बच्चों के लिए एक अनूठा त्योहार है । इससे उनके अंदर छुपी रचनात्मकता और बालसुलभ उत्साह बाहर आता है।
फूलदेई की कुछ प्रमुख परंपराएं हैं:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान: बच्चे सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं।
- फूल इकट्ठा करना: बच्चे सुबह-सुबह अलग-अलग तरह के जंगली फूल इकट्ठा करते हैं।
- रंगोली बनाना: घर की दहलीज पर फूलों से रंगोली बनाते हैं।
- विधि: घर की दहलीज पर फूलों से रंगोली बनाएं और पूजा सामग्री अर्पित करें।
- लोकगीत: फूलदेई के लोकगीत गाते हुए घर-घर जाकर आशीर्वाद और मिठाईयां लें।
फूलदेई पूजा की तैयारी – सामग्री सूची
इस त्यौहार में सादगी का अहम स्थान है, और इसका ज़ोर प्रकृति के साथ मेलजोल पर रहता है। यहां उन चीज़ों की सूची दी गयी है जो इस सरल पर सुंदर पूजा में काम आती हैं:
- फूल: सबसे मुख्य चीज़! फूलदेई की पूजा जंगल से एकत्र किये गए रंगबिरंगे फूलों से होती है। खासकर के बुरांश (Rhododendron), भेंटूल (Himalayan birch के फूल), और अन्य स्थानीय रूप से मिलने वाले फूलों को प्राथमिकता मिलती है।
- चावल: हिंदू धर्म में अधिकतर पूजाओं में, अक्षत (बिना टूटे चावल) का इस्तेमाल किया जाता है। इसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
- फल और मिठाईयां: ताज़े, साबुत फल और क्षेत्र विशेष की मिठाईयां भी घर की दहलीज पर चढ़ाई जाती हैं । ऐसा करने से घर में समृद्धि और मिठास आने की मान्यता है।
- जल: एक लोटे में स्वच्छ जल लेकर उससे भगवान का आचमन किया जाता है।
- दीपक एवं अगरबत्ती: यह हर पूजा का अभिन्न हिस्सा हैं। दीपक ज्ञान का प्रतीक है और अगरबत्ती से वातावरण शुद्ध होता है।
- रंगोली के लिये सामग्री: चावल का आटा, कुमकुम, हल्दी इत्यादि से पारंपरिक रंगोली भी बनायी जाती है।
रानी घोघा और खोई हुई राजकुमारी: संक्षिप्त कहानी
हिमालय के एक राज्य में राजा घुघोजित की प्यारी बेटी घोघा रहती थी। एक दिन वह जंगल में घूमते हुए गायब हो गई।
राजा ने उसे ढूंढने के लिए बहुत कोशिशें कीं, परंतु कोई सफलता नहीं मिली। उन्होंने राज्य के बुद्धिमानों और एक साधु से भी सलाह ली।
साधु ने राजा को चैत्र महीने के पहले दिन बच्चों को फूल चढ़ाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि बच्चों की मासूमियत और फूलों की सुंदरता देवी-देवताओं को प्रसन्न करेगी।
राजा ने साधु की सलाह मानते हुए एक उत्सव का आयोजन किया। बच्चे रंग-बिरंगे फूलों से घर-घर जाकर दरवाजों को सजाने लगे।
इस उत्सव के चमत्कार से कुछ ही समय बाद राजकुमारी घोघा वापस आ गई। खुशी से झूमते हुए राजा ने उस दिन को “फूलदेई” त्योहार के रूप में घोषित किया।
यह त्योहार बच्चों की मासूमियत, प्रकृति से जुड़ाव और सामूहिक अच्छाई का प्रतीक है।
उपसंहार
फूलदेई उत्तराखंड का एक अनूठा त्योहार है जो बच्चों में प्रकृति प्रेम, सृजनात्मकता, और आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है। रंग-बिरंगे फूलों से सजी दहलीज, मधुर लोकगीत, और बच्चों की मस्ती से भरा यह त्योहार उत्तराखंड की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
आइए, इस खूबसूरत त्योहार को हर्षोल्लास से मनाते हैं और बच्चों के जीवन में खुशियां और समृद्धि लाते हैं!
आप सब को फूलदेई की ढेरों शुभकामनाएं!
FAQs
प्रश्न: फूलदेई का त्योहार कैसे मनाया जाता है?
उत्तर: फूलदेई का त्योहार बच्चों द्वारा मनाया जाता है। बच्चे सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद वे जंगल में जाते हैं और विभिन्न प्रकार के फूल इकट्ठा करते हैं। फिर वे घर की दहलीज पर फूलों से रंगोली बनाते हैं और पूजा सामग्री अर्पित करते हैं। इसके बाद वे फूलदेई के लोकगीत गाते हुए घर-घर जाकर आशीर्वाद और मिठाईयां लेते हैं।
प्रश्न: फूलदेई का त्योहार उत्तराखंड के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
उत्तर: फूलदेई का त्योहार उत्तराखंड की संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह त्योहार बच्चों में प्रकृति प्रेम, सृजनात्मकता, और आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है। यह त्योहार उत्तराखंड के लोगों को एकजुट करता है और उन्हें अपनी संस्कृति पर गर्व महसूस कराता है।
प्रश्न: फूलदेई का त्योहार कहां-कहां मनाया जाता है?
उत्तर: फूलदेई का त्योहार मुख्य रूप से उत्तराखंड राज्य में मनाया जाता है। यह त्योहार उत्तराखंड के सभी क्षेत्रों में मनाया जाता है, जिसमें कुमाऊं, गढ़वाल, और जौनसार शामिल हैं। इसके अलावा, यह त्योहार हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी मनाया जाता है।
प्रश्न:फूलदेई का त्योहार कब से मनाया जा रहा है?
उत्तर: फूलदेई का त्योहार कब से मनाया जा रहा है, इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं है। माना जाता है कि यह त्योहार प्राचीन काल से मनाया जा रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि यह त्योहार 10वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है, जब राजा कत्यूरी ने उत्तराखंड में अपना शासन स्थापित किया था।
प्रश्न:फूलदेई का त्योहार किसके नाम से जुड़ा हुआ है?
उत्तर: फूलदेई का त्योहार ‘घोघा माता’ के नाम से जुड़ा हुआ है। घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है। मान्यता है कि घोघा माता बच्चों की रक्षा करती हैं और उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।
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