अहोई माता आरती: पूजा विधि और महत्व के साथ
परिचय
भारत त्योहारों का देश है, और इन त्योहारों में से एक है अहोई अष्टमी। एक ऐसा व्रत जो माँ अपने बच्चों की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए रखती हैं। आइए आज इस शुभ पर्व की महत्ता, कथा, पूजा विधि तथा अहोई माता की आरती के बारे में विस्तृत रूप से जानें।
अहोई माता की आरती
जय अहोई माता,
जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावत,
हर विष्णु विधाता ॥
ॐ जय अहोई माता ॥ब्रह्माणी, रुद्राणी, कमला,
तू ही है जगमाता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता ॥
ॐ जय अहोई माता ॥
माता रूप निरंजन,
सुख-सम्पत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत,
नित मंगल पाता ॥
ॐ जय अहोई माता ॥
तू ही पाताल बसंती,
तू ही है शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक,
जगनिधि से त्राता ॥
ॐ जय अहोई माता ॥
जिस घर थारो वासा,
वाहि में गुण आता ।
कर न सके सोई कर ले,
मन नहीं घबराता ॥
ॐ जय अहोई माता ॥
तुम बिन सुख न होवे,
न कोई पुत्र पाता ।
खान-पान का वैभव,
तुम बिन नहीं आता ॥
ॐ जय अहोई माता ॥
शुभ गुण सुंदर युक्ता,
क्षीर निधि जाता ।
रतन चतुर्दश तोकू,
कोई नहीं पाता ॥
ॐ जय अहोई माता ॥
श्री अहोई माँ की आरती,
जो कोई गाता ।
उर उमंग अति उपजे,
पाप उतर जाता ॥
ॐ जय अहोई माता,
मैया जय अहोई माता ।
“अहोई अष्टमी” नाम क्यों?
“अहोई” शब्द का अर्थ है ‘अनहोनी को टालना’ और ‘अष्टमी’ का अर्थ होता है ‘आठवां दिन’। इस व्रत को राधाष्टमी भी कहा जाता है।
पूजन सामग्री
अहोई माता की पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री चाहिए:
- अहोई माता का चित्र या मूर्ति
- रोली, मौली, चावल
- धूप, दीपक, कपूर
- पानी का लोटा, करवा
- मिठाई, फल, फूल
- पूजा की चौकी
- अहोई (पूजा का प्रसाद बनाने के लिए विशेष प्रकार का भोजन)
- स्याहु और उसके बच्चों की तस्वीर
- बयाना (पूजा के अंत में पंडित या सास को दान)
पूजा विधि
अहोई अष्टमी पर महिलाएं एक दिन पूर्व ही भोजन कर लेती हैं और पूरे दिन निर्जल उपवास रखती हैं।
- स्नान आदि: सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
- संकल्प: सबसे पहले संकल्प किया जाता है। व्रती को अपनी संतान के नाम के साथ संकल्प लेना चाहिए।
- अहोई माता की पूजा: एक दीवार पर गेरू से अहोई माता और स्याहु के बच्चों की छवि चित्रित करें, या अहोई माता का चित्र स्थापित करें। विधिवत रूप से उनकी पूजा करें।
- कथा श्रवण: अहोई माता की कथा सुनें या पढ़ें।
- करवा चौथ जैसे करें पूजा: करवा चौथ के समान अष्टमी के दिन तारों को देखकर अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोलें। कुछ स्थानों पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करते हैं।
अहोई अष्टमी के लाभ
- भारतीय परंपरा के अनुसार, अहोई अष्टमी का व्रत रखने से संतान को प्राप्ति होती है।
- संतान सुखी और स्वस्थ रहती है।
- इस व्रत को करने से महिलाओं में धैर्य, संयम और सहनशीलता बढ़ती है।
- घर में सुख-शांति बनी रहती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- अहोई अष्टमी पर किसे पूजा जाता है? उत्तर: अहोई अष्टमी पर, भक्त अहोई माता, जिन्हें देवी पार्वती का रूप माना जाता है, की पूजा करते हैं।
- अगर तारे दिखाई न दें तो क्या करें? उत्तर: ऐसा माना जाता है कि यदि तारे दिखाई नहीं दे रहे हैं, तो महिलाएं अपने परिवार के किसी बुजुर्ग पुरुष के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत तोड़ सकती हैं।
- क्या अविवाहित लड़कियां भी यह व्रत कर सकती हैं? उत्तर: हालांकि परंपरागत रूप से अहोई अष्टमी सिर्फ संतान वाली महिलाएं करती हैं, अविवाहित लड़कियां भी अच्छे वर के लिए इस व्रत को कर सकती हैं।
- अहोई अष्टमी व्रत को कैसे तोड़ें? उत्तर: महिलाएं तारों को अर्घ्य देने के बाद हलवा, पूड़ी या अहोई (विशेष पकवान) का भोग लगाकर अपना व्रत तोड़ती हैं।
अहोई अष्टमी से जुड़े कुछ भक्तों के अनुभव
भारत में, अहोई अष्टमी से जुड़ी हुई कई चमत्कारी कहानियां प्रचलित हैं। यह पर्व आस्थावान भक्तों की अडिग श्रद्धा और अहोई माता के आशीर्वाद का साक्षी है। भक्तों में से कुछ अपने अनुभव साझा करते हैं:
- मुंबई की रीना बताती हैं “मुझे कई वर्षों तक संतान नहीं हुई थी। जब मैंने अहोई अष्टमी का व्रत करना शुरू किया, तो माता ने मुझ पर कृपा की और मुझे एक स्वस्थ पुत्र का आशीर्वाद दिया।”
- अमृतसर की सीमा जी कहती हैं, “मेरा बेटा अक्सर बीमार रहता था। जब से मैंने अहोई माता का व्रत रखना शुरू किया है, उसका स्वास्थ्य काफी अच्छा रहता है।”
निष्कर्ष
अहोई अष्टमी का पर्व माँ और संतान के बीच के अटूट बंधन के बारे में है। यह व्रत माँ के बच्चों के प्रति निस्वार्थ प्रेम, देखभाल और बलिदान को दर्शाता है। यह त्यौहार माताओं को अपनी संतान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके दीर्घायु व खुशहाल जीवन के लिए प्रार्थना करने का अवसर प्रदान करता है।
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