चित्रगुप्त चालीसा: महान लेखाकार की दिव्य स्तुति
परिचय
नमस्कार दोस्तों! आज हम एक ऐसे देवता के बारे में जानेंगे जो हमारे हर कर्म का ब्यौरा रखते हैं और अंतिम न्याय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मैं बात कर रहा हूं भगवान चित्रगुप्त की – हिंदू धर्म में न्याय और कर्म के देवता। इस ब्लॉग में, हम चित्रगुप्त चालीसा की गहराई में उतरेंगे, इसके महत्व पर प्रकाश डालेंगे और इस शक्तिशाली प्रार्थना के लाभों पर विचार करेंगे।
हिंदू पौराणिक कथाओं में चित्रगुप्त को यमराज (मृत्यु के देवता) का मुख्य सहायक माना जाता है। उनका दिव्य कर्तव्य सभी प्राणियों के अच्छे और बुरे कर्मों का रिकॉर्ड रखना है। मृत्यु के बाद यह लेख-जोखा ही किसी की आत्मा की अगली यात्रा का निर्धारण करता है। कायस्थ समुदाय के लोग विशेष रूप से चित्रगुप्त जी को अपना कुलदेवता मानते हैं।
चित्रगुप्त चालीसा
॥ दोहा ॥
सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊ शीश।
ब्रह्मा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश॥
करो कृपा करिवर वदन, जो सरशुती सहाय।
चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरूपद लाय॥॥ चौपाई ॥
जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर।
जय यमेश दिगंत उजागर॥
अज सहाय अवतरेउ गुसांई।
कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई॥
श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा।
भांति-भांति के जीवन राचा॥
अज की रचना मानव संदर।
मानव मति अज होइ निरूत्तर॥ ४ ॥
भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई।
धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई॥
राचेउ धरम धरम जग मांही।
धर्म अवतार लेत तुम पांही॥
अहम विवेकइ तुमहि विधाता।
निज सत्ता पा करहिं कुघाता॥
श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी।
त्रय देवन कर शक्ति समानी॥ ८ ॥
पाप मृत्यु जग में तुम लाए।
भयका भूत सकल जग छाए॥
महाकाल के तुम हो साक्षी।
ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी॥
धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो।
कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो॥
राम धर्म हित जग पगु धारे।
मानवगुण सदगुण अति प्यारे॥ १२ ॥
विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें।
पालन धर्म करम शुचि साजे॥
महादेव के तुम त्रय लोचन।
प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन॥
सावित्री पर कृपा निराली।
विद्यानिधि माँ सब जग आली॥
रमा भाल पर कर अति दाया।
श्रीनिधि अगम अकूत अगाया॥ २० ॥
ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो।
जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो॥
गुरू बृहस्पति सुर पति नाथा।
जाके कर्म गहइ तव हाथा॥
रावण कंस सकल मतवारे।
तव प्रताप सब सरग सिधारे॥
प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा।
सोउ करत तुम्हारी सेवा॥ २४ ॥
रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी।
विघ्न हरण शुभ काज संवारी॥
व्यास चहइ रच वेद पुराना।
गणपति लिपिबध हितमन ठाना॥
पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा।
असवर देय जगत कृत कीन्हा॥
लेखनि मसि सह कागद कोरा।
तव प्रताप अजु जगत मझोरा॥ २८ ॥
विद्या विनय पराक्रम भारी।
तुम आधार जगत आभारी॥
द्वादस पूत जगत अस लाए।
राशी चक्र आधार सुहाए॥
जस पूता तस राशि रचाना।
ज्योतिष केतुम जनक महाना॥
तिथी लगन होरा दिग्दर्शन।
चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन॥ ३२ ॥
राशी नखत जो जातक धारे।
धरम करम फल तुमहि अधारे॥
राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई।
प्रथम गुरू महिमा गुण गाई॥
श्री गणेश तव बंदन कीना।
कर्म अकर्म तुमहि आधीना॥
देववृत जप तप वृत कीन्हा।
इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा॥ ३६ ॥
धर्महीन सौदास कुराजा।
तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा॥
हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा।
कायथ परिजन परम पितामा॥
शुर शुयशमा बन जामाता।
क्षत्रिय विप्र सकल आदाता॥
जय जय चित्रगुप्त गुसांई।
गुरूवर गुरू पद पाय सहाई॥ ४० ॥
जो शत पाठ करइ चालीसा।
जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा॥
विनय करैं कुलदीप शुवेशा।
राख पिता सम नेह हमेशा॥
॥ दोहा ॥
ज्ञान कलम, मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र।
कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखे दंडास्त्र॥
पाप पुन्य लेखा करन, धार्यो चित्र स्वरूप।
श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा, सरग नरक कर भूप॥
॥ इति श्री चित्रगुप्त चालीसा समाप्त॥
चित्रगुप्त चालीसा का महत्व
चित्रगुप्त चालीसा 40 छंदों वाला एक भक्ति गीत है जो भगवान चित्रगुप्त की स्तुति करता है। यह माना जाता है कि चित्रगुप्त चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और सकारात्मक कर्म रिकॉर्ड बनते हैं। इस भजन से न्यायपूर्ण जीवन जीने और जीवन भर अच्छे कर्म करने की प्रेरणा भी मिलती है।
चालीसा पाठ और पूजा विधि
चित्रगुप्त पूजा आमतौर पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया पर की जाती है, जिसे यम द्वितीया या भाई दूज के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन कलम और दवात की पूजा करने की भी परंपरा है।
यहाँ चित्रगुप्त चालीसा के साथ पूजा करने का सरल तरीका है:
- स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- एक चौकी पर भगवान चित्रगुप्त जी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- धूप, दीप, रोली, अक्षत, फूल और फल अर्पित करें।
- चित्रगुप्त चालीसा का पाठ करें।
- अंत में, चित्रगुप्त जी की आरती करें और प्रसाद बांटें।
चित्रगुप्त चालीसा के लाभ
- मानसिक शांति और मोक्ष के मार्ग में सहायक
- कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति देता है।
- अच्छे कर्म करने और कुविचारों से दूर रहने के लिए प्रेरित करता है।
- सद्गुणों का विकास होता है।
- जीवन में अनुशासन और नैतिकता लाता है।
भगवान चित्रगुप्त से जुड़ी कथा
हिंदू पुराणों के अनुसार एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी कई वर्षों तक निःसंतान थे, उन्होंने इसके लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की। ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया लेकिन यह भी कहा कि यह पुत्र मात्र 14 वर्ष जीवित रहेगा। पुत्र का नाम चित्रगुप्त रखा गया और समय के साथ वह बड़ा होने लगा। जब उसकी आयु 14 वर्ष के करीब आई तो एक दिन यमदूत उसे लेने आए। चित्रगुप्त ने उन्हें भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने के लिए कुछ समय देने को कहा। यह सुनकर यमदूत भगवान चित्रगुप्त के पास गए और उन्हें पूरी घटना बताई। चित्रगुप्त ने अपनी लेखनी से उस बालक की आयु बढ़ा दी। इस प्रकार चित्रगुप्त जी ही मृत्यु के लेखे-जोखे के देवता बने।
भक्तों के अनुभव
कई भक्तों ने चित्रगुप्त पूजा और चालीसा पाठ के सकारात्मक अनुभव साझा किए हैं। उनमें से कुछ का दावा है कि इस प्रार्थना के नियमित जाप से उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आए हैं। वे कठिनाइयों को दूर करने के लिए आत्मविश्वास और मानसिक शक्ति में वृद्धि का अनुभव करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- चित्रगुप्त जयंती कब मनाई जाती है? उत्तर: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि।
- चित्रगुप्त पूजा के लिए सबसे अच्छा समय क्या है? उत्तर: सुबह (ब्रह्म मुहूर्त)।
- चित्रगुप्त को क्या चढ़ाया जाता है? उत्तर: रोली, अक्षत, धूप, दीप, फूल, फल, मिठाई, कलम और दवात।
- क्या मैं रोज़ चित्रगुप्त चालीसा पढ़ सकता हूँ? उत्तर: हाँ, दैनिक पाठ अत्यधिक लाभकारी माना जाता है।
निष्कर्ष
प्रिय मित्रों, जीवन अनिश्चितताओं पर चलता है, पर चित्रगुप्त चालीसा हमें याद दिलाता है कि हमारे हर कर्म का हिसाब है। यह हमें सत्यनिष्ठा, न्याय और करुणा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। इस दिव्य प्रार्थना को नियमित रूप से अपनाकर हम अपने जीवन में आध्यात्मिक विकास और सकारात्मकता को आमंत्रित कर सकते हैं।
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