श्री गायत्री चालीसा (Shri Gayatri Chalisa)
हिंदू धर्म में, माँ गायत्री को वेदों की जननी और सभी देवताओं की शक्ति का स्रोत माना जाता है। गायत्री चालीसा एक शक्तिशाली प्रार्थना है जो माँ गायत्री के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करती है। आइए, श्री गायत्री चालीसा का अर्थ, महत्व, और लाभ जानने के साथ, उसे पाठ करने का सही तरीका भी समझें।
गायत्री मंत्र का विशेष महत्व
गायत्री मंत्र, जो गायत्री चालीसा में भी कई बार आता है, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र मंत्रों में से एक है।
गायत्री मंत्र इस प्रकार है:
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
अर्थ: हे ईश्वर, आप पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग के दाता हैं। आपका तेज ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है। हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप हमारी बुद्धि को शुद्ध करें और हमें सन्मार्ग पर ले जाएं।
गायत्री चालीसा का अर्थ और लाभ
गायत्री चालीसा का नियमित पाठ करने से अनगिनत लाभ मिल सकते हैं:
- आध्यात्मिक विकास: जाप करने से मन शुद्ध होता है, और बुद्धि का विकास होता है। इससे भक्तों की आध्यात्मिक यात्रा में वृद्धि होती है।
- नकारात्मकता से सुरक्षा: गायत्री देवी की शक्ति जीवन से बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों को दूर करती है।
- मन की शांति: गायत्री चालीसा का पाठ करने से मन में गहरी शांति और स्थिरता का अनुभव होता है।
- इच्छाओं की पूर्ति: सच्ची भक्ति और श्रद्धा के साथ पाठ करने पर माना जाता है कि मां गायत्री भक्तों की उचित मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
गायत्री चालीसा पाठ करने की विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
- पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें।
- माँ गायत्री की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- दीप जलाएं, धूप या अगरबत्ती जलाएं।
- श्रद्धापूर्वक गायत्री चालीसा का पाठ करें।
- पाठ के अंत में माँ गायत्री की आरती करें।
श्री गायत्री चालीसा– वीडियो
श्री गायत्री चालीसा
॥ दोहा ॥
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥॥ चालीसा ॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥
अक्षर चौबिस परम पुनीता ।
इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥
शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥
हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥
ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
निराकार की अदभुत माया ॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥
तुम्हरी महिमा पारन पावें ।
जो शारद शत मुख गुण गावें ॥
चार वेद की मातु पुनीता ।
तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥
महामंत्र जितने जग माहीं ।
कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥१२॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
आलस पाप अविघा नासै ॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥
ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
तुम सों पावें सुरता तेते ॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
तुम सम अधिक न जग में आना ॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥
जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
माता तुम सब ठौर समाई ॥
ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे ।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥
सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।
पालक पोषक नाशक त्राता ॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
तुम सन तरे पतकी भारी ॥२४॥
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
तापर कृपा करें सब कोई ॥
मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें ।
रोगी रोग रहित है जावें ॥
दारिद मिटै कटै सब पीरा ।
नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥
गृह कलेश चित चिंता भारी ।
नासै गायत्री भय हारी ॥२८ ॥
संतिति हीन सुसंतति पावें ।
सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी ।
तुम सम और दयालु न दानी ॥
जो सदगुरु सों दीक्षा पावें ।
सो साधन को सफल बनावें ॥
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी ।
लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥
अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता ।
सब समर्थ गायत्री माता ॥३६॥
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी ।
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
सो सो मन वांछित फल पावें ॥
बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ ।
धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥
सकल बढ़ें उपजे सुख नाना ।
जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥४०॥
॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥
पूजा सामग्री:
- देवी गायत्री की मूर्ति या तस्वीर
- दीपक (तेल या घी के साथ)
- अगरबत्ती या धूप की बत्तियां
- चन्दन, कुमकुम, हल्दी
- ताजे फूल और फूलमाला
- प्रसाद (मिठाई, फल आदि)
- जल से भरा शुद्ध पात्र
पूजा की स्थापना
- मां गायत्री की एक प्रतिमा या तस्वीर एक स्वच्छ स्थान पर स्थापित करें। एक दीपक जलाएं और अगरबत्ती या धूप जलाएं। आप ताजे फूल और प्रसाद भी चढ़ा सकते हैं।
- दीपक: अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है।
- धूप/अगरबत्ती: शुद्धता और भक्त की प्रार्थना को ईश्वर तक ले जाने का प्रतिनिधित्व करती है।
- पुष्प: प्रेम, समर्पण और भक्ति का प्रतीक है।
- प्रसाद: ईश्वर के साथ हमारी साझेदारी और उनके आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में।
गायत्री चालीसा को दैनिक जीवन में शामिल करना
- नियमित अभ्यास: सर्वोत्तम परिणामों के लिए, गायत्री चालीसा को अपने दैनिक ध्यान या प्रार्थना दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
- मनन: चालीसा का पाठ करते समय केवल शब्दों के उच्चारण पर ही ध्यान न दें। इसके अर्थ पर चिंतन करें और अपने भीतर देवी के दिव्य गुणों पर मनन करें।
- ईमानदारी: आपका पाठ यांत्रिक नहीं होना चाहिए। सच्ची आस्था, भक्ति और शुद्ध हृदय से गायत्री चालीसा का पाठ करें।
निष्कर्ष
गायत्री चालीसा के नियमित पाठ से आपको दिव्य मार्गदर्शन, आंतरिक शांति और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने में सहायता मिल सकती है। माँ गायत्री के असीम आशीर्वाद से आपका जीवन रोशन हो, ऐसा मेरा विश्वास है! क्या आप गायत्री चालीसा को अपनी दैनिक प्रार्थना का हिस्सा बनाएंगे? नीचे टिप्पणियों में अपने विचारों और अनुभवों को साझा करें।
हे माँ गायत्री! कृपा करो हम पर
हे माँ गायत्री, आपकी महिमा अपार है। हम सभी आपकी शरण में हैं। हमारी बुद्धि पर सदैव अपना हाथ बनाए रखें, और हमें जीवन के सत्य की राह दिखाएं!
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