क्यों प्रकट हुई माँ भगवती?(Why did Maa Bhagwati appear?)

पर Shreya Dwivedi द्वारा प्रकाशित

why maa durga appeared?

नमस्कार दोस्तों! हिंदू धर्म में, माँ दुर्गा या शक्ति को सर्वोच्च देवी और ब्रह्मांड की स्त्री रचनात्मक ऊर्जा के रूप में पूजा जाता है। कई पौराणिक कथाएँ उनकी उत्पत्ति और संसार में उनके अवतरण के कारणों का वर्णन करती हैं। आइए, आज उन पौराणिक कथाओं में से कुछ को जानने का प्रयास करें, जो हमें ‘क्यों प्रकट हुई माँ भगवती’ के प्रश्न का उत्तर खोजने में सहायता करती हैं।

देवी दुर्गा की उत्पत्ति: पौराणिक कथाएँ

विभिन्न पुराणों में देवी दुर्गा की उत्पत्ति के बारे में अनेक कथाएँ मिलती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाओं का उल्लेख नीचे किया गया है:

1. देवी भागवत पुराण:

देवी भागवत पुराण को एक प्रमुख शाक्त (देवी-केंद्रित) ग्रंथ माना जाता है। यह प्राचीन पुराण देवी शक्ति को सृष्टि की मूल शक्ति मानता है, जिन्होंने सभी देवताओं और ब्रह्मांड को जन्म दिया है। इसके अनुसार:

  • सृजन का प्रारंभ: देवी भागवत के अनुसार प्रारंभ में आदि शक्ति, जो निराकार और सृष्टि की मूल स्रोत हैं, केवल वही विद्यमान थीं। उन्होंने ही अपने भीतर से त्रिदेव – ब्रह्मा (सृष्टि), विष्णु (पालनकर्ता), और शिव (संहारक) को प्रकट किया।
  • शक्ति का महत्व: जब ब्रह्मा ने सृष्टि का कार्य आरम्भ किया, तो राक्षसों के रूप में कई अहंकारी और नकारात्मक शक्तियाँ भी जन्म लेने लगीं। ये राक्षस देवताओं को पीड़ित करने लगे और धीरे-धीरे सृष्टि में अधर्म बढ़ने लगा।
  • देवी दुर्गा का प्रादुर्भाव: सभी देवता, ब्रह्मा, विष्णु, और शिव से मिलकर मदद के लिए आदि शक्ति के पास गए। तब देवी ने कहा कि जब भी अधर्म अपनी सीमाएँ लाँघेगा, वे स्त्री रूप में जन्म लेंगी। अत्याचार बढ़ने पर देवताओं की करुण पुकार सुनकर आदि शक्ति ने ही देवी दुर्गा का रूप धारण किया। देवी दुर्गा सर्वव्यापक और सबकी माता हैं।
  • देवी की अन्य व्याख्याएं: देवी भागवत पुराण में आदि शक्ति को ही देवी दुर्गा और अन्य देवी रूपों जैसे महाकाली, महालक्ष्मी, और महासरस्वती के रूप में जाना जाता है।

2. मार्कंडेय पुराण:

मार्कंडेय पुराण, शैव परंपरा में एक प्रमुख पुराण है और हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में से एक माना जाता है। इसमें देवी सप्तशती नामक महत्त्वपूर्ण खंड शामिल है, जो विशेष रूप से देवी शक्ति या दुर्गा का महिमामंडन करता है। इसमें देवी दुर्गा की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार है:

  • राक्षसों का उत्पात: पुराण की कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक बार देवता और राक्षस (दानव) के बीच भीषण युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में दानवों की विजय हुई, और उन्होंने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। देवताओं को परास्त कर राक्षसों के अत्याचार से संसार में अशांति और पीड़ा फैल गई।
  • देवताओं की आराधना: इस विपत्ति में ब्रह्मा, विष्णु, शिव और अन्य देवता एकजुट हुए और उन्होंने आदि शक्ति या महामाया की आराधना शुरू कर दी।
  • देवी महामाया का अवतरण: देवताओं की तीव्र भक्ति से प्रसन्न होकर आदि शक्ति ने महामाया के रूप में प्रकट हुईं। देवी के शरीर से एक तेज उत्पन्न हुआ जिससे देवी दुर्गा का जन्म हुआ। देवी दुर्गा में सभी देवताओं की सम्मिलित शक्ति और तेज था।
  • महिषासुर वध: देवी दुर्गा ने कई दिनों तक भीषण युद्ध किया और महिषासुर समेत कई राक्षसों का वध कर देवलोक को मुक्त कराया।

3. देवी कवच:

देवी कवच, मार्कंडेय पुराण के दुर्गा सप्तशती कांड का हिस्सा है। यह एक स्तोत्र है, जिसमें देवी दुर्गा को एक शक्तिशाली और भयंकर योद्धा देवी के रूप में वर्णित किया गया है।

  • शक्तिशाली संरक्षक: देवी कवच (“कवच” अर्थ “रक्षा कवच”) में, देवी दुर्गा को त्रिपुरा सुंदरी कहा गया है। त्रिपुरा सुंदरी तीनों लोकों के सुख की देवी हैं, और इस रूप में वे भक्तों को उनकी दुर्भावनाओं और दुश्मनों से बचाती हैं।
  • राक्षसों पर विजय: देवी कवच में वर्णन यह है कि जब राक्षसों के अत्याचार से देवता पीड़ित हो गए थे, तब देवताओं ने महाशक्ति की स्तुति की। महाशक्ति के ही एक अंश से देवी दुर्गा का रूप प्रकट हुआ और उन्होंने राक्षसों से भयंकर युद्ध किया। देवी कवच इस युद्ध के अलग-अलग कालखंड और देवी द्वारा इस्तेमाल विभिन्न अस्त्रों-शस्त्रों का उल्लेख करता है।
  • अनंत स्वरूप: देवी कवच में, देवी दुर्गा को एक शक्तिशाली देवी के रूप में माना जाता है जिनके कई रूप हैं। यह माना जाता है कि देवी पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, काली एवं अन्य देवियाँ सभी दुर्गा के ही अंश और विभिन्न रूप हैं। सभी स्त्री शक्ति का मूल स्त्रोत वही हैं।

4. शिव पुराण:

शिव पुराण एक महत्वपूर्ण शैव (भगवान शिव-केंद्रित) ग्रंथ है। इस पुराण में भी माँ दुर्गा का महत्व बताया गया है और विभिन्न स्थानों पर उनसे जुड़ी कथाओं का वर्णन मिलता है। शिव पुराण में, देवी दुर्गा को आदिशक्ति पार्वती का विकराल रूप माना जाता है:

  • पार्वती – शक्ति का स्वरुप: शिव पुराण में पार्वती को भगवान शिव की पत्नी और आदि शक्ति का अवतार बताया गया है। पार्वती ही सती के रूप में पूर्व जन्म में प्रकट हुई थीं और भगवान शिव से विवाह करने के लिए घोर तपस्या की थी। माँ पार्वती शिव की अर्धांगिनी हैं और उनके बिना शिव भी अपूर्ण माने जाते हैं। पार्वती शक्ति का सौम्य और ममतामयी रूप हैं।
  • दुर्गा – विकराल रूप: शिव पुराण में वर्णन है कि कई मौकों पर जब असुरों का अत्याचार बढ़ा और संसार में संतुलन बिगड़ने लगा, तब माता पार्वती ने देवी दुर्गा का विकराल और शक्तिशाली रूप ले धर्म की पुनर्स्थापना की। दुर्गा को पार्वती का ही क्रोधमयी अवतार माना जाता है, जो बुराई के विनाश के लिए उत्पन्न होता है।
  • अनेक कथाएँ: शिव पुराण में माँ दुर्गा द्वारा किये गए राक्षसों के वध की अनेक कथाएँ मिलती हैं। इनमें शुंभ-निशुंभ वध व अन्य कथाएँ शामिल हैं।

5. वामन पुराण:

वामन पुराण एक महत्वपूर्ण वैष्णव (भगवान विष्णु को केन्द्रित रखने वाला) पुराण है। इस पुराण में भी देवी शक्ति का वर्णन मिलता है और देवी दुर्गा की कहानी को एक अलग परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया है।

  • योगिनी का रूप: वामन पुराण में देवी दुर्गा को एक योगिनी के रूप में बताया गया है। योगिनियाँ रहस्यमयी और दिव्य स्त्री शक्तियाँ होती हैं, जो असीम क्षमताओं से युक्त होती हैं।
  • देवी दुर्गा की कथा: पुराण की कथा के अनुसार, एक समय दैत्यों ने देवताओं को पराजित कर, स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था। पीड़ित देवता भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को सांत्वना दी और कहा कि वे उनकी मदद के लिए आदिशक्ति (मूल देवी) से प्रार्थना करें। देवताओं की प्रार्थना पर आदिशक्ति प्रकट हुईं और उन्होंने देवी दुर्गा के रूप में योगिनी शक्तियों को प्रकट किया। देवी दुर्गा ने कई राक्षसों के साथ भीषण युद्ध किया और अंत में उनका संहार कर, देवताओं के राज्य वापस लौटा दिए।
  • योगिनी शक्ति: वामन पुराण के हिसाब से जिस तरह से भगवान विष्णु अपने विभिन्न अवतारों के रूप में राक्षसों का संहार करते हैं, उसी तरह आदिशक्ति भी योगिनी शक्तियों या देवी दुर्गा जैसे रूपों में अवतरित होकर धर्म की रक्षा करती हैं।

6. ब्रह्मवैवर्त पुराण:

ब्रह्मवैवर्त पुराण एक कृष्ण-केंद्रित पुराण है और इसके अनुसार:

  • प्रकृति माँ: इस पुराण में आदि शक्ति को ‘प्रकृति’ माना गया है। प्रकृति को श्रीकृष्ण की मूल शक्ति और सभी सृजन का स्रोत बताया गया है।
  • प्रकृति से जन्म: ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण और उनकी शक्ति, राधा ने ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, और देवी दुर्गा को जन्म दिया।
  • देवी चंडी: देवी दुर्गा को माँ चंडी के रूप में भी इस पुराण में चित्रित किया गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में चंडिका (देवी दुर्गा) का भयंकर रूप प्रदर्शित हुआ है जिन्होंने राक्षसों शुंभ-निशुंभ का वध किया था।
  • अधर्म के समय प्रकट होना: मार्कंडेय पुराण और देवी भागवत पुराण की ही तरह, ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी कहा गया है कि जब जब संसार में अधर्म बढ़ता है, देवी भगवती स्वयं प्रकट होकर धर्म की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए अलग-अलग रूप धारण करती हैं।

1. बुराई पर अच्छाई की विजय:

माँ दुर्गा की कथाएँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि अच्छाई की शक्ति हमेशा बुराई पर विजयी होती है।

2. स्त्री शक्ति का महत्व:

देवी दुर्गा का स्वरुप स्त्री शक्ति, करुणा, एवं वीरता का प्रतीक है। उनकी कथाएं हमें महिलाओं की शक्ति और क्षमताओं का सम्मान करने की सीख देती हैं।

3. आध्यात्मिक विकास:

माँ दुर्गा का अवतरण हमें बुराई और अहंकार से ऊपर उठने और आध्यात्मिक विकास की राह पर चलने के लिए प्रोत्साहित करता है।

4. सामाजिक न्याय:

देवी दुर्गा ने अनेक राक्षसों का वध किया जिन्होंने समाज में अत्याचार और अन्याय फैलाया था।

5. धार्मिक सहिष्णुता:

माँ दुर्गा सभी धर्मों और समुदायों के लोगों की रक्षा करती हैं।

6. आशा और प्रेरणा:

माँ दुर्गा की कथाएं हमें आशा और प्रेरणा देती हैं कि जब भी हमारे जीवन में कठिनाइयां आती हैं, तो हमें उनका सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है।

7. नैतिकता और मूल्यों का पालन:

माँ दुर्गा हमें सत्य, न्याय, और सदाचार का पालन करने की सीख देती हैं।

8. भक्ति और आस्था:

माँ दुर्गा की कथाएं हमें ईश्वर के प्रति भक्ति और आस्था रखने के लिए प्रेरित करती हैं।

9. आत्मविश्वास और साहस:

माँ दुर्गा हमें आत्मविश्वास और साहस के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं।

10. क्षमा और दया:

माँ दुर्गा क्षमा और दया की देवी भी हैं। वे हमें क्षमा करने और दूसरों के प्रति दयालु होने की सीख देती हैं।

दोस्तों, देवी दुर्गा अनादि काल से विभिन्न अवसरों पर अवतरित हुई हैं और दुष्टों का सर्वनाश कर धर्म की रक्षा की है। वे सृष्टि में संतुलन और सद्भाव को बनाए रखने वाली एक महत्वपूर्ण दैवीय शक्ति हैं। माँ दुर्गा की उपासना केवल बुराई के विनाश से ही जुड़ी नहीं है, बल्कि यह हमें नैतिकता, आत्म-शुद्धि, साहस और निस्वार्थ प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देती है।

भारतीय संस्कृति में माँ दुर्गा के कई स्वरूप प्रचलित हैं, जैसे कि नवदुर्गा, काली, चामुंडा, जगदंबा, इत्यादि। इन सभी स्वरूपों में निहित शक्ति और भक्ति भाव हमारी आध्यात्मिक यात्रा को गतिशील बनाते हैं। इस नवरात्रि के पावन अवसर पर आइए, हम माता रानी के चरणों में आत्मसमर्पण कर उनके द्वारा प्रदर्शित सद्गुणों का अपने जीवन में अनुसरण करने का प्रण लें।

माँ दुर्गा का जीवन हमें सिखाता है कि चुनौतियों से हार नहीं माननी चाहिए। कठिनाइयों में भी साहस, वीरता, और संकल्प के साथ आगे बढ़ने से ही हम अपने लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। आइए, इसी संदेश को आत्मसात कर हम अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करें और समाज में योगदान दें।

याद रखिये, माँ भगवती की कृपा दृष्टि सदैव अपने भक्तों पर रहती है। शुद्ध हृदय और श्रद्धा भाव से उनकी आराधना हम सभी के लिए कल्याणकारी है।

जय माता दी!

1. क्या देवी दुर्गा एक ही देवी हैं या विभिन्न रूपों में प्रकट होती हैं?

देवी दुर्गा आदि शक्ति का स्वरूप हैं, जो विभिन्न रूपों में प्रकट होकर भक्तों की रक्षा करती हैं। देवी भागवत पुराण में उन्हें नवदुर्गा, चंडी, काली, आदि के रूपों में दर्शाया गया है।

2. क्या देवी दुर्गा की उत्पत्ति के बारे में सभी पुराणों में एक ही कहानी है?

नहीं, प्रत्येक पुराण में देवी दुर्गा की उत्पत्ति के बारे में थोड़ी भिन्न कहानी है। कुछ में उन्हें आदि शक्ति का स्वरूप बताया गया है, कुछ में त्रिदेवों की शक्तियों से उत्पन्न, और कुछ में ब्रह्मा, विष्णु, और शिव की पत्नी के रूप में दर्शाया गया है।

3. देवी दुर्गा की कथाओं का क्या महत्व है?

देवी दुर्गा की कथाएं हमें सिखाती हैं कि:

  • बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है।
  • स्त्री शक्ति का सम्मान करना चाहिए।
  • हमें आध्यात्मिक विकास की राह पर चलना चाहिए।
  • हमें सामाजिक न्याय और धार्मिक सहिष्णुता का पालन करना चाहिए।
  • हमें कठिनाइयों का सामना करने में साहस और आत्मविश्वास रखना चाहिए।

4. क्या आज भी देवी दुर्गा प्रकट हो सकती हैं?

हाँ, देवी दुर्गा का स्वरूप सृष्टि में सदैव विद्यमान है। जब भी अधर्म बढ़ता है, वे भक्तों की रक्षा के लिए विभिन्न रूपों में प्रकट हो सकती हैं।

5. हम देवी दुर्गा की कृपा कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए:

  • हमें सत्य, न्याय, और सदाचार का पालन करना चाहिए।
  • हमें ईश्वर के प्रति भक्ति और आस्था रखनी चाहिए।
  • हमें आत्मविश्वास और साहस के साथ जीवन जीना चाहिए।
  • हमें क्षमा और दया का गुण धारण करना चाहिए।
  • हमें नियमित रूप से देवी दुर्गा की उपासना करनी चाहिए।

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