महावीर स्वामी आरती: बोल, अर्थ और महत्व
परिचय
नमस्कार दोस्तों! जैन धर्म आत्मज्ञान एवं अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। आज हम जिस आरती की चर्चा करेंगे, वह इसी अहिंसा के परम पुजारी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी, को समर्पित है। आरती: श्री महावीर भगवान | जय सन्मति देवा के माध्यम से हम उनकी दिव्यता के समक्ष नतमस्तक होते हैं।
भगवान महावीर का जन्म आज से लगभग 2,600 वर्ष पूर्व बिहार के क्षत्रियकुंड में हुआ था। इनका मूल नाम वर्धमान था। तीस वर्ष की आयु में उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। महावीर स्वामी के उपदेशों का सार अहिंसा, अपरिग्रह, और अनेकांतवाद जैसे सिद्धांतों में समाहित है। आइए, अब हम उनकी दिव्य आरती पर ध्यान केंद्रित करें।
श्री महावीर भगवान आरती: जय सन्मति देवा
जय सन्मति देवा,
प्रभु जय सन्मति देवा।
वर्द्धमान महावीर वीर अति,
जय संकट छेवा ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥सिद्धार्थ नृप नन्द दुलारे,
त्रिशला के जाये ।
कुण्डलपुर अवतार लिया,
प्रभु सुर नर हर्षाये ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
देव इन्द्र जन्माभिषेक कर,
उर प्रमोद भरिया ।
रुप आपका लख नहिं पाये,
सहस आंख धरिया ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
जल में भिन्न कमल ज्यों रहिये,
घर में बाल यती ।
राजपाट ऐश्वर्य छोड़ सब,
ममता मोह हती ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
बारह वर्ष छद्मावस्था में,
आतम ध्यान किया।
घाति-कर्म चूर-चूर,
प्रभु केवल ज्ञान लिया ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
पावापुर के बीच सरोवर,
आकर योग कसे ।
हने अघातिया कर्म शत्रु सब,
शिवपुर जाय बसे ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
भूमंडल के चांदनपुर में,
मंदिर मध्य लसे ।
शान्त जिनेश्वर मूर्ति आपकी,
दर्शन पाप नसे ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
करुणासागर करुणा कीजे,
आकर शरण गही।
दीन दयाला जगप्रतिपाला,
आनन्द भरण तु ही ॥
॥ऊँ जय सन्मति देवा…॥
जय सन्मति देवा,
प्रभु जय सन्मति देवा।
वर्द्धमान महावीर वीर अति,
जय संकट छेवा ॥
जय सन्मति देवा,
प्रभु जय सन्मति देवा।
वर्द्धमान महावीर वीर अति,
जय संकट छेवा ॥
आरती: ॐ जय महावीर प्रभु | आरती: ॐ जय महावीर प्रभु – जगनायक सुखदायक
आरती का भावार्थ
महावीर स्वामी की आरती उनके द्वारा प्रतिपादित उच्च जीवन मूल्यों को रेखांकित करती है। ‘सन्मति ज्ञान’ का तात्पर्य सच्चे ज्ञान से है, जो कि आत्मा को स्वयं जानने के मार्ग पर ले जाता है। ‘अहिंसा परमो धर्म’ की पंक्ति जैन धर्म के सबसे मूलभूत सिद्धांत, अहिंसा को सर्वोच्च स्थान देती है।
आरती का महत्व
आरती के नियमित पाठ से भक्तों के हृदय में श्रद्धा और भक्ति का भाव जागृत होता है। महावीर स्वामी के आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है। आरती करते समय जैन धर्म के मूल सिद्धांतों पर चिंतन करने से आत्मिक उन्नति संभव होती है।
पूजा विधि
- आरती प्रातःकाल या संध्या के समय की जा सकती है।
- सबसे पहले भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा या चित्र को पवित्र जल/दूध से स्नान कराएं।
- उन्हें चंदन, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें।
- तत्पश्चात भक्तिभाव से आरती का पाठ करें और घंटी या करताल आदि वाद्यों का उपयोग करें।
- आरती के बाद क्षमा याचना करें।
आरती से जुड़ी प्रचलित कथा
कहा जाता है कि एक बार अहिच्छत्र नगरी के राजा सोमिल के सामने भगवान महावीर की आरती गाने से उनके रोग और जीवन के संकट दूर हो गए थे। इस कथा से आरती के प्रभाव और उसकी चमत्कारी शक्ति के बारे में पता चलता है।
आरती के लाभ
- आरती से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मन को शांति मिलती है, और चिंताएं दूर होती हैं।
- महावीर स्वामी के बताए मार्ग पर चलने की प्रेरणा व बल मिलता है।
- दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
- प्रश्न: क्या आरती का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है? उत्तर: यद्यपि सुबह और शाम का समय आरती के लिए उत्तम माना गया है, लेकिन श्रद्धा और भक्ति से किसी भी समय आरती की जा सकती है।
- प्रश्न: यदि प्रतिदिन आरती करना संभव नहीं हो, तो हफ्ते में कितनी बार करना चाहिए?
उत्तर: सप्ताह में कम से कम एक बार आरती अवश्य करें। - प्रश्न: आरती करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? उत्तर: आरती करते समय आपका मन पूर्ण रूप से भक्ति में लीन होना चाहिए। मोबाइल फोन आदि विकर्षणों से बचें।
निष्कर्ष
दोस्तों, महावीर स्वामी की आरती न केवल भक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है बल्कि आत्मा की शुद्धि की ओर भी प्रेरित करती है। हम जितना अधिक महावीर स्वामी की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारेंगे, हमारा जीवन उतना ही सार्थक बनेगा। आइए, हम सब ‘आरती: श्री महावीर भगवान | जय सन्मति देवा’ के माध्यम से उनकी शरण में चलने का संकल्प लें।
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