नवरात्रि का पहला दिन(First Day Of Navratri) – शैलपुत्री माँ(Shailputri Maa)

पर Shreya Dwivedi द्वारा प्रकाशित

नवरात्रि का पहला दिन(First Day Of Navratri) – शैलपुत्री माँ(Shailputri Maa)

नमस्ते! आइये आज हम बात करेंगे नवरात्रि के पहले दिन की पूजा और माता शैलपुत्री के विशेष महत्व के बारे में। इस पहले दिन, हम माँ दुर्गा के सबसे शांत और सौम्य स्वरूप की आराधना करते हैं। उनका यह स्वरूप ममता, पोषण और शक्ति का प्रतीक है।

इस ब्लॉग में क्या है?
  1. शैलपुत्री का अर्थ

शैलपुत्री का अर्थ

शैलपुत्री नाम दो शब्दों से मिलकर बना है:

  • शैल – जिसका अर्थ है पर्वत या पहाड़
  • पुत्री – जिसका अर्थ है बेटी

इस प्रकार, शैलपुत्री का अर्थ है पर्वतराज हिमालय की पुत्री। माता पार्वती को हिमालय और रानी मेनका की पुत्री होने के कारण शैलपुत्री नाम से भी जाना जाता है।

माँ शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत सुंदर, शांत और ममतामयी है।

स्वरूप की विशेषताएं:

  • वस्त्र: माँ शैलपुत्री लाल रंग की वस्त्र धारण करती हैं। लाल रंग शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है।
  • आभूषण: माँ शैलपुत्री सोने और चांदी के आभूषणों से सुशोभित हैं। इनके मुकुट, हार, कंगन, और कमरबंद अत्यंत सुंदर हैं।
  • हाथ: माँ शैलपुत्री के चार हाथ हैं।
  • अस्त्र-शस्त्र: माँ शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे हाथ में कमल का फूल, तीसरे हाथ में वरदान मुद्रा और चौथे हाथ में अभय मुद्रा है।
  • वाहन: माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है। वृषभ शक्ति और धैर्य का प्रतीक है।

माँ शैलपुत्री नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाने वाली देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं। इनका स्वरूप अत्यंत शांत, ममतामयी और शक्ति का प्रतीक है। माँ शैलपुत्री के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

1. शक्ति और शौर्य का प्रतीक

माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। हिमालय पर्वत अपनी ऊंचाई और शक्ति के लिए जाने जाते हैं। इस प्रकार, माँ शैलपुत्री शक्ति और शौर्य का प्रतीक हैं।

2. ममता और पोषण का स्वरूप

माँ शैलपुत्री देवी पार्वती का स्वरूप हैं। देवी पार्वती भगवान शिव की पत्नी और माँ गणेश की माता हैं। इस प्रकार, माँ शैलपुत्री ममता और पोषण का स्वरूप हैं।

3. कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा

माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण कठिन परिस्थितियों में भी अपना जीवन व्यतीत करती हैं। इस प्रकार, माँ शैलपुत्री उन भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

4. नवरात्रि का प्रथम स्वरूप

नवरात्रि देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का त्योहार है। माँ शैलपुत्री नवरात्रि का प्रथम स्वरूप हैं। इनकी पूजा करने से भक्तों को नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा के अन्य स्वरूपों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

5. सुख, समृद्धि और ज्ञान

माँ शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों को सुख, समृद्धि और ज्ञान प्राप्त होता है। माँ शैलपुत्री भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ शैलपुत्री देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं और इनकी पूजा करने से भक्तों को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

माँ शैलपुत्री की पूजा विधि:

1. तैयारी

  • सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थान को साफ करके चौकी बिछाएं।
  • चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • कलश स्थापित करें।
  • कलश के चारों ओर स्वास्तिक बनाएं।
  • माँ शैलपुत्री की मूर्ति या तस्वीर को चौकी पर स्थापित करें।
  • दीपक जलाएं और माँ शैलपुत्री का आह्वान करें।

2. पूजन विधि

  • माँ शैलपुत्री को जल, दूध, फूल, धूप, फल आदि अर्पित करें।
  • माँ शैलपुत्री का ध्यान करें और उनसे आशीर्वाद मांगे।
  • माँ शैलपुत्री की आरती करें।

माँ शैलपुत्री मंत्र

ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

3. चौकी स्थापना

  • अब चौकी रखने वाले स्थान अर्थात जमीन पर सिंदूर, हल्दी और अक्षत में से किसी एक के उपयोग से स्वास्तिक बनाएं।
  • इसपर चौकी की स्थापना करें और चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इस चौकी को गंगाजल से पवित्र करें
  • इस पर बताये गए दिशा के निर्देशों के अनुसार माता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
  • इसके बाद माता के सामने चौकी पर दायीं और बाईं तरफ अक्षत से अनुसार दो अष्टदल बनाएं।
  • ध्यान रखें कि माता के दाएं तरफ अष्टदल पर कलश की स्थापना की जाती है, और बाएं तरफ के अष्टदल पर दीपक रखा जाता है।
  • यह करने के बाद सबसे पहले दीप और धूप जलाएं।
  • सर्वप्रथम गणेशजी का आह्वान करने के लिए एक पान के पत्ते पर गणेशजी को माता के बाएं तरफ स्थापित करें। इनपर गंगाजल का छिड़काव करें।
  • ‘ॐ गं गणपतेय नमः’ मंत्र का 5 बार जाप करते हुए श्रीगणेश को कुमकुम-हल्दी, अक्षत, फूल-फल आदि चढ़ाएं।

4. कलश स्थापना

  • दाईं ओर के अष्टदल पर कलश स्थापना करें।
  • मिट्टी या तांबे के कलश में शुद्ध जल भरें, इसमें गंगाजल की कुछ बूंदे मिलाएं और कलश के उभार पर
  • हल्दी-कुमकुम लगाकर इसके मुख पर लाल कलावा बांधे।
  • अब दो लौंग, दो सुपारी, एक हल्दी की गांठ, अक्षत, दो इलायची और एक सिक्के को सीधे हाथ में लेकर कलश में डालें।
  • यदि इनमें से कुछ सामग्री आपको नहीं मिल पाई हो, तो आप शुद्ध जल में सिर्फ सिक्का और चावल डालकर भी कलश स्थापित कर सकते हैं।
  • इसके बाद अष्टदल रूपी आम के पत्तों को हल्दी कुमकुम लगाकर इस कलश के मुख पर रखें।
  • अब नारियल पर लाल चुनरी या लाल वस्त्र को कलावा की मदद से लपेट लें और इसे कलश पर रखें।
  • इसके बाद नारियल पर हल्दी-कुमकुम और अक्षत अर्पण करें।

घटस्थापना

  • घटस्थापना के लिए सबसे पहले एक मिट्टी का बड़ा कटोरा लें।
  • उसमें साफ गीली काली मिट्टी भरें, अब इसमें ‘जौ या गेहूं’ जो आपके पास उपलब्ध हो, वो बो दें।
  • घट पर हल्दी और कुमकुम लगाएं और कलावा चढ़ाएं।
  • इसे अंजुली की मदद से पानी डालकर सींचे।

अखंड ज्योत

  • अखंड ज्योत के लिए एक दीपक में घी या तेल लेकर दीपक जलायें और इसे एक आवरण से ढंकें।
  • ध्यान दें की नवरात्रि के दौरान प्रज्जवलित यह ज्योत लगातार जलती रहे।
  • अब माता का आह्वान करें- माता दुर्गा के लिए ‘ॐ दुं दुर्गायै नमः’ मंत्र के साथ माता शैलपुत्री का आह्वान करें और ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥ मन्त्र का पांच-पांच बार जप करें।
  • इस आह्वान के बाद अब माता को कुमकुम-हल्दी लगाएं।
  • तद्पश्चात माँ को फूल और माला पहनाएं।
  • इसके बाद माँ दुर्गा को लाल चुनरी, पूरा श्रृंगार और फल अर्पित करें।
  • माता शैलपुत्री को सफ़ेद रंग बहुत प्रिय है, इसीलिए माँ शैलपुत्री को सफ़ेद रंग की पुष्पमाला और सफ़ेद रंग का उपवस्त्र चढ़ाएं।
  • माता दुर्गा को हलवा-पुड़ी का भोग लगाएं।
  • माँ शैलपुत्री को सफेद मिठाई बहुत प्रिय है, इसीलिए पहले दिन की पूजा में सफेद मिठाई का भोग अवश्य लगाएं।
  • यदि आप सम्पूर्ण श्रृंगार एकत्रित नहीं कर पाएं, तो माता को मेहन्दी अवश्य अर्पित करें। यह माता के प्रिय श्रृंगारों में से एक है।
  • माँ शैलपुत्री के लिए निम्न मंत्र का उच्चारण करें

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

  • अब दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। यदि आप दुर्गा सप्तशती का पूर्ण पाठ एक साथ करने में असमर्थ हैं, तो इसे अपने समयनुसार कर सकते हैं।
  • अब इसके बाद माता शैलपुत्री की आरती करें।
  • अब आरती के बाद सभी में प्रसाद वितरित करने के बाद खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।
  • चूँकि प्रथम दिन की पूजा बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह दिन माँ नवदुर्गा के प्रथम अवतार माँ शैलपुत्री का दिन माना जाता है, और इस दिन की गई पूजा आपके लिए बहुत लाभदायक होगी, इसीलिए इसे अवश्य करें।

5. उपवास:

नवरात्रि के पहले दिन कई भक्त उपवास भी रखते हैं। उपवास रखते समय, निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:

  • सुबह जल्दी उठें और स्नान करें।
  • पूजा करें और माँ शैलपुत्री से आशीर्वाद मांगे।
  • दिन भर फल, दूध, और पानी का सेवन करें।
  • भोजन न करें।
  • शाम को पूजा करें और आरती करें।
  • उपवास खोलने से पहले, माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद लें।

6. दान:

नवरात्रि के पहले दिन दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। आप गरीबों को भोजन, कपड़े, या अन्य आवश्यक वस्तुएं दान कर सकते हैं।

माँ शैलपुत्री की पूजा करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सामग्री

सामग्रीविवरण
माँ शैलपुत्री की मूर्ति या तस्वीरमाँ शैलपुत्री की मूर्ति या तस्वीर पूजा का केंद्र बिंदु है।
कलशकलश को देवी दुर्गा का प्रतीक माना जाता है।
दीपकदीपक ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है।
नैवेद्यनैवेद्य देवी को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है।
फूलफूल देवी को प्रसन्न करने का एक तरीका है।
फलफल देवी को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है।
धूपधूप देवी को प्रसन्न करने का एक तरीका है।
दीपदीप ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है।
अगरबत्तीअगरबत्ती देवी को प्रसन्न करने का एक तरीका है।
सिंदूरसिंदूर देवी को प्रसन्न करने का एक तरीका है।
रोलीरोली देवी को प्रसन्न करने का एक तरीका है।
चावलचावल देवी को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है।
सुपारीसुपारी देवी को प्रसन्न करने का एक तरीका है।
दक्षिणादक्षिणा देवी को प्रसन्न करने का एक तरीका है।

अतिरिक्त सामग्री:

  • चौकी
  • लाल कपड़ा
  • स्वास्तिक
  • जल
  • दूध
  • हवन सामग्री
  • मंत्र पुस्तिका

नवरात्र के पहले दिन माँ दुर्गा की पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन माँ शैलपुत्री स्वरुप की पूजा का विधान है। इसी दिन घटस्थापना/कलशस्थापना की जाती है, जो पूरे नौ दिनों तक रहता है। इस वर्ष नवरात्रि आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 14 अक्टूबर 2023 से शुरू होगी और 16 अक्टूबर 2023 को समाप्त होगी। ऐसे में शारदीय नवरात्री की शुरुआत 15 अक्टूबर को पड़ रही है।

अगर हम बात करें घटस्थापना/कलशस्थापना की तो इस वर्ष आश्विन घटस्थापना रविवार, 15 अक्टूबर 2023 को सुबह 11:20 से दोपहर 12:07 बजे तक घटस्थापना का शुभ मुहूर्त रहेगा और इसकी कुल अवधि 46 मिनट की होगी।

नवरात्रि भक्तों की आस्था के साथ उनके समर्पण एवं संयम का भी प्रतीक होती है। इस दौरान भक्त माता की आराधना में पूर्णतः लीन हो जाते हैं, और अपने भक्तिभाव को प्रकट करने के लिए पूजा एवं व्रत भी करते हैं। व्रत करने वाले लोगों के मन में इस दौरान खाने-पीने को लेकर कई प्रकार की शंकाएं होती हैं, जिन्हें दूर करने के लिए हम आपके लिए यह खास जानकारी लेकर आए हैं। अगर आप भी नवरात्रि में माता की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत रखना चाहते हैं, तो उससे पहले यह ज़रूरी है कि आप इन बेहद महत्वपूर्ण बातों को जान लें

व्रत के समय लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि व्रत में वह किन चीज़ों का सेवन कर सकते हैं, तो जानते हैं कि आप व्रत में क्या खा सकते हैं और क्या नहीं- नवरात्रि के 9 दिन केवल सात्विक भोजन ही करना चाहिए। यह भोजन शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इससे हमारा पाचन तंत्र भी ठीक रहता है, साथ ही मन और शरीर भी संतुलित रहता है। नियमित रूप से सात्विक भोजन के सेवन से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है।

यह तो हम सभी जानते हैं कि व्रत में सादा नमक नहीं खाया जाता है, व्रत के भोजन में केवल सेंधा नमक का प्रयोग करें। आप व्रत के दौरान फलों का सेवन कर सकते हैं, ताज़े फलों का जूस पी सकते हैं, दूध पी सकते हैं और उससे बनी हुई चीज़ें जैसे दही, छाछ, लस्सी और मावे का सेवन भी कर सकते हैं।

कौन सा आटा और चावल खा सकते हैं:

व्रत में अनाज खाना पूरी तरह वर्जित होता है, इसमें केवल फल से बने आटे जैसे कि सिंघाड़े और कुट्टु के आटे का सेवन किया जा सकता है। आमतौर पर, लोग इसकी पूड़ी या पकोड़ी बनाकर खाते हैं। इसके अलावा समा या सामक के चावल का सेवन किया जाता सकता है, इन्हें उपवास के चावल के नाम से भी जाना जाता है।

कौन सी सब्ज़ियां खा सकते हैं

व्रत में सात्विक तरह से बनाई गई सब्ज़ियों को भी खा सकते हैं, हालांकि व्रत में केवल कुछ ही सब्ज़ियां खाई जाती हैं। इनमें आलू, शकरकंद, अरबी, गाजर, कच्चा केला, लौकी, टमाटर, ककड़ी, खीरा, हरा धनिया जैसी सब्ज़ियां शामिल हैं। इन्हें खाने से आपको ऊर्जा मिलती है और पाचन भी ठीक रहता है।

खाने में किस तेल का प्रयोग करें

अगर बात करें, कि व्रत का भोजन बनाने के लिए किस तेल का प्रयोग करना चाहिए तो सबसे बेहतर रहेगा अगर आप खाना शुद्ध घी में बनाएं। अगर ऐसा संभव नहीं है तो सूरजमुखी का तेल, मूंगफली का तेल या नारियल के शुद्ध तेल का प्रयोग भी कर सकते हैं। यह ध्यान रखें कि सरसों के तेल का सेवन बिल्कुल न करें।

कौन से मसाले खाए जा सकते हैं

मसाले खाने का अभिन्न हिस्सा होते हैं, लेकिन व्रत में सभी मसालों का उपयोग नहीं किया जा सकता। व्रत का खाना बनाते वक्त जीरा, काली मिर्च, काली मिर्च पाउडर, लौंग, इलायची और दालचीनी जैसे मसालों का प्रयोग किया जा सकता है।

चाय और कॉफी का सेवन कर सकते हैं या नहीं

व्रत में चाय पी जा सकती है, हालांकि कॉफी को लेकर कई लोगों के मन में संदेह होता है, आप कॉफी ले सकते हैं, अगर उसमें केवल 100 प्रतिशत कॉफी बीन्स का इस्तेमाल किया गया है।

और क्या-क्या खा सकते हैं

  • हल्के नाश्ते के लिए आप मखाने और मूंगफली घी में रोस्ट कर सकते हैं और उसे खा सकते हैं। मखाने सेहत के लिए काफी लाभदायक भी होते हैं।
  • साबूदाना और उससे बनने वाली खीर व खिचड़ी को भी व्रत में खाने के लिए उपयुक्त माना गया है। इसे खाने से पेट लंबे समय तक भरा रहता है।
  • इसके अलावा व्रत में सूखे मेवों का सेवन भी काफी फायदेमंद होता है, क्योंकि यह बेहद पौष्टिक होते हैं।
  • आपको बता दें कि विभिन्न जगहों पर विभिन्न परंपराओं के हिसाब से भी व्रत में खाना खाया जाता है। तो आप उस आधार पर भी यह निर्धारित कर सकते हैं कि आपको व्रत में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं।

व्रत के दौरान स्वास्थ्य का विशेष ख्याल रखना भी काफी महत्वपूर्ण होता है। इसलिए व्रत में ऐसी चीज़ों से परहेज करें, जिससे आपको एसिडिटी या कोई भी अन्य समस्या हो जाए। इसके लिए आप ज़्यादा तली हुई चीज़ें न खाएं। घी, आलू, तेल और सूखे मेवे जैसी चीज़ों का सेवन संतुलित मात्रा में करें। पानी पीते रहे।

व्रत के प्रसाद या फलाहार में प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता। प्याज और लहसुन को राजसिक और तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इनके सेवन से तमस प्रकृति और वासना में वृद्धि होती है और नवरात्रि के व्रत मन की शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अहम माना गया है। इस कारण नवरात्रि या किसी भी धार्मिक कार्य में प्याज़ और लहसुन का उपयोग नहीं किया जाता।

नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री का होता है। इस दिन माता की विधि पूर्वक पूजा के साथ ही, गाय का शुद्ध घी या फिर उससे बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है। ऐसा करने से, भक्तों को सभी कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है। इस दिन आप बादाम का हलवा भी बना सकते हैं।

बादाम का हलवा बनाने के लिए, सबसे पहले बादाम को हल्का उबालें और उन्हें छीलकर इसका दरदरा पेस्ट बनाएं। इसके बाद, एक पैन में देसी घी गर्म करें और इसमें पेस्ट डाल दें। फिर इसमें चीनी डालकर धीमी आंच पर हलवे को सुनहरा रंग होने तक पकाएं। इस तरह, बादाम के हलवे का भोग बनकर तैयार हो जाएगा।

शिव महापुराण के अनुसार, एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया था । इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी-देवताओं एवं ऋषियों को अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया। किंतु उन्होंने इस यज्ञ में अपने दामाद अर्थात शिवजी को आमंत्रित नहीं किया। जब यह समाचार माता सती ने सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तो माता सती का मन भी उस यज्ञ में शामिल होने के लिए व्याकुल हो उठा।

इसके बाद माता सती ने यज्ञ में चलने के लिए शिव जी से आग्रह किया तब शिव जी ने उत्तर दिया कि इस यज्ञ में समस्त देवी-देवताओं एवं ऋषियों को निमंत्रित किया गया है। किंतु हमें यज्ञ-भाग हेतु बुलावा नहीं भेजा गया है। ऐसी स्थिति में बिना निमंत्रण के हमारा वहां जाना उचित नहीं है।

किंतु शंकरजी के इन विचारों से माता सती सहमत नहीं हुई और पिता के यज्ञ का हिस्सा बनने के लिए उस आयोजन में पहुंच गई। लेकिन पिता प्रजापति दक्ष ने उनके उस आयोजन में आने की उपेक्षा की, तथा शिव जी के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। अपने पिता द्वारा अपने पति का यह अपमान देखकर माता सती का मन पश्चाताप, क्षोभ एवं क्रोध से भर उठा, और वह इस दुर्व्यवहार को सहन नहीं कर सकी। उन्होंने उसी क्षण योगाग्नि द्वारा स्वयं को भस्म कर लिया।

इसके बाद अपने अगले जन्म में माता सती ने ही पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ के नाम से विख्यात हुर्ईं। माता सती के समान ही माँ शैलपुत्री महादेव शिव की अर्धांगिनी बनीं।

॥ आरती देवी शैलपुत्री जी की ॥

ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ सर्व सुखों की दात्री देना माँ करुणा ॐ जय शैलपुत्री माँ ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ

सर्व सुखों की दात्री देना माँ करुणा ॐ जय शैलपुत्री माँ

हस्त कमल अति सोहे त्रिशूलधारिणी माँ मैया त्रिशूलधारिणी माँ शीश झुकावें हम सब कृपा माँ नित करना ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ

दक्षराज सुता मैया कष्ट निवारणी माँ मैया कष्ट निवारणी माँ नवदुर्गाओं में प्रथम, नवदुर्गाओं में प्रथम तुम्हारी है पूजा ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ

वृषभ पे मैया विराजे शीश मुकुट सोहे मैया शीश मुकुट सोहे ऋषि मुनि नर गुण गावें, ऋषि मुनि नर गुण गावें छवि अति मन मोहे ॐ जय शैलपुत्री माँ

घट घट व्यापनी माता, सुख तुमसे आवे मैया सुख तुमसे आवे जो कोई ध्यावे मन से जो कोई ध्यावे मन से इच्छित फल पावे ॐ जय शैलपुत्री माँ

भक्तों के मन में मैया तुम्हरा नित है निवास मैया तुम्हरा नित है निवास रिद्धि सिद्धि प्रदात्री, रिद्धि सिद्धि प्रदात्री तुमसे है दिव्य प्रकाश ॐ जय शैलपुत्री माँ

नवरात्रों में जो भी व्रत माता का करे जो भी व्रत माता का करे आनंद नित वो पावे…आनंद नित वो पावे माँ भंडार भरे ॐ जय शैलपुत्री माँ

हम सब तुम्हरे मैया, तुम हमरी माता मैया तुम हमरी माता दया दृष्टि माँ करना दया दृष्टि माँ करना हम करें जगराता ॐ जय शैलपुत्री माँ

शैलपुत्री माँ की आरती जो जन नित गावे सुख की बद्री बरसे मन नित हर्षावे ॐ जय शैलपुत्री माँ

ॐ जय शैलपुत्री माँ मैया जय शैलपुत्री माँ सर्व सुखों की दात्री देना माँ करुणा ॐ जय शैलपुत्री माँ

शैलपुत्री माँ: एक संक्षिप्त विवरण

नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को समर्पित होता है। माँ शैलपुत्री देवी दुर्गा का प्रथम स्वरूप हैं और इनकी पूजा करने से भक्तों को सुख, समृद्धि, और ज्ञान प्राप्त होता है।

माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और इनका स्वरूप अत्यंत शांत, ममतामयी और शक्ति का प्रतीक है। माँ शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों को जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है।

नवरात्रि के पहले दिन भक्त माँ शैलपुत्री की पूजा करते हैं, नैवेद्य अर्पित करते हैं, और आरती करते हैं। भक्त उपवास भी रखते हैं और दान भी करते हैं।

माँ शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

यह नवरात्रि, आइए हम सभी माँ शैलपुत्री की पूजा करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।


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