प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat): भगवान शिव के आशीर्वाद से जीवन बदलें
क्या आप मन की शांति, अच्छी सेहत, और जीवन में सफलता चाहते हैं? अगर हाँ, तो प्रदोष व्रत आपके लिए है। हिंदू धर्म में, प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है और माना जाता है कि इसे सच्चे मन से करने पर उनकी असीम कृपा भक्तों पर बरसती है। आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़ी सारी जरूरी बातें!
प्रदोष व्रत 2024
- अगला प्रदोष व्रत: शुक्रवार, 8 मार्च 2024 (कृष्ण पक्ष, फाल्गुन मास)
- प्रदोष काल: शाम 06:25 – रात 08:52 (अपने शहर के सूर्यास्त के समय के अनुसार जांच लें)
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत करने के कई लाभ माने जाते हैं:
- जीवन की बाधाएं दूर होती हैं: प्रदोष व्रत से बड़े से बड़े संकट दूर हो जाते हैं।
- आरोग्य मिलता है: अगर आप बार-बार बीमार होते हैं, तो प्रदोष व्रत कर के देखें। शिव जी की कृपा से आपकी सेहत में सुधार होने लगेगा।
- मनोकामनाएं पूरी होती हैं: सच्चे मन से प्रदोष व्रत रखने वालों की भगवान शिव सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति होती है: मान्यता है कि लगातार कई जन्मों तक प्रदोष व्रत करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
प्रदोष व्रत की विधि
- शुद्धि सर्वोपरि: प्रातः काल उठ कर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- संकल्प करें: भगवान शिव के सामने बैठ कर व्रत का संकल्प लें।
- उपवास: इस दिन पूर्ण उपवास रखें। अगर संभव नहीं है, तो फलाहार किया जा सकता है।
- भगवान शिव की पूजा: प्रदोष काल में, यानी सूर्यास्त के कुछ देर पहले और 45 मिनट बाद, शिव जी की पूजा करें। शिवलिंग का अभिषेक करें, उन्हें फल-फूल अर्पित करें, और शिव चालीसा पढ़ें।
- कथा सुनें: प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
- आरती करें: भगवान शिव की आरती करके प्रसाद बांटें।
प्रदोष व्रत कथा
प्राचीनकाल में एक गरीब पुजारी हुआ करता था। उस पुजारी की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी अपने भरण-पोषण के लिए पुत्र को साथ लेकर भीख मांगती हुई शाम तक घर वापस आती थी।
एक दिन उसकी मुलाकात विदर्भ देश के राजकुमार से हुई, जो कि अपने पिता की मृत्यु के बाद दर-दर भटकने लगा था। उसकी यह हालत पुजारी की पत्नी से देखी नहीं गई, वह उस राजकुमार को अपने साथ अपने घर ले आई और पुत्र जैसा रखने लगी।
एक दिन पुजारी की पत्नी अपने साथ दोनों पुत्रों को शांडिल्य ऋषि के आश्रम ले गई। वहां उसने ऋषि से शिव जी के प्रदोष व्रत की कथा एवं विधि सुनी तथा घर जाकर अब वह भी प्रदोष व्रत करने लगी।
एक बार दोनों बालक वन में घूम रहे थे। उनमें से पुजारी का बेटा तो घर लौट गया, परंतु राजकुमार वन में ही रह गया। उस राजकुमार ने गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते हुए देखा तो उनसे बात करने लगा। उस कन्या का नाम अंशुमती था। उस दिन वह राजकुमार घर देरी से लौटा।
राजकुमार दूसरे दिन फिर से उसी जगह पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता से बात कर रही थी। तभी अंशुमती के माता-पिता ने उस राजकुमार को पहचान लिया तथा उससे कहा कि आप तो विदर्भ नगर के राजकुमार हो ना, आपका नाम धर्मगुप्त है।
अंशुमती के माता-पिता को वह राजकुमार पसंद आया और उन्होंने कहा कि शिवजी की कृपा से हम अपनी पुत्री का विवाह आपसे करना चाहते है, क्या आप इस विवाह के लिए तैयार हैं?
राजकुमार ने अपनी स्वीकृति दे दी तो उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ। बाद में राजकुमार ने गंधर्व की विशाल सेना के साथ विदर्भ पर हमला किया और घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त की तथा पत्नी के साथ राज्य करने लगा। वहां उस महल में वह पुजारी की पत्नी और पुत्र को आदर के साथ ले आया तथा साथ रखने लगा। पुजारी की पत्नी तथा पुत्र के सभी दुःख व दरिद्रता दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे का कारण और रहस्य पूछा, तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी बात बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।
उसी दिन से प्रदोष व्रत की प्रतिष्ठा व महत्व बढ़ गया तथा मान्यतानुसार लोग यह व्रत करने लगे। कई जगहों पर अपनी श्रद्धा के अनुसार स्त्री-पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट और पाप नष्ट होते हैं एवं मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
स्कन्द पुराण के अनुसार प्रदोष व्रत
॥ सूत उवाच ॥
साधु पृष्टं महाप्राज्ञा भवद्भिर्लोकविश्रुतैः ॥
अतोऽहं संप्रवक्ष्यामि शिवपूजाफलं महत् ॥४॥
त्रयोदश्यां तिथौ सायं प्रदोषः परिकीर्त्तितः ॥
तत्र पूज्यो महादेवो नान्यो देवः फलार्थिभिः ॥५॥
प्रदोषपूजामाहात्म्यं को नु वर्णयितुं क्षमः ॥
यत्र सर्वेऽपि विबुधास्तिष्ठंति गिरिशांतिके ॥६॥
प्रदोषसमये देवः कैलासे रजतालये ॥
करोति नृत्यं विबुधैरभिष्टुतगुणोदयः ॥७॥
अतः पूजा जपो होमस्तत्कथास्तद्गुणस्तवः ॥
कर्त्तव्यो नियतं मर्त्यैश्चतुर्वर्गफला र्थिभिः ॥८॥
दारिद्यतिमिरांधानां मर्त्यानां भवभीरुणाम् ॥
भवसागरमग्नानां प्लवोऽयं पारदर्शनः ॥९॥
दुःखशोकभयार्त्तानां क्लेशनिर्वाणमिच्छताम् ॥
प्रदोषे पार्वतीशस्य पूजनं मंगलायनम् ॥३.३.६.१०॥
– स्कन्दपुराणम्/खण्डः ३ (ब्रह्मखण्डः)/ब्रह्मोत्तर खण्डः/अध्यायः ६
वार के अनुसार प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह महीने में दो बार, त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। वार के अनुसार प्रदोष व्रत का महत्व भी भिन्न होता है।
1. रवि प्रदोष:
- रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को रवि प्रदोष या भानु प्रदोष कहा जाता है।
- इस व्रत से नाम, यश, सम्मान, सुख, शांति और लंबी आयु प्राप्त होती है।
- यदि कुंडली में अपयश योग है या सूर्य संबंधी परेशानी है तो इससे यह दोष दूर होता है।
2. सोम प्रदोष:
- सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष कहा जाता है।
- इस व्रत से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- यह व्रत चंद्रमा संबंधी दोषों को दूर करने के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
3. मंगल प्रदोष:
- मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को मंगल प्रदोष कहा जाता है।
- इस व्रत से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और साहस, पराक्रम और बल में वृद्धि होती है।
- यह व्रत मंगल ग्रह संबंधी दोषों को दूर करने के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
4. बुध प्रदोष:
- बुधवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष कहा जाता है।
- इस व्रत से बुद्धि, ज्ञान और विद्या प्राप्त होती है।
- यह व्रत बुध ग्रह संबंधी दोषों को दूर करने के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
5. गुरु प्रदोष:
- गुरुवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष कहा जाता है।
- इस व्रत से धन, समृद्धि और वैभव प्राप्त होता है।
- यह व्रत गुरु ग्रह संबंधी दोषों को दूर करने के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
6. शुक्र प्रदोष:
- शुक्रवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोष कहा जाता है।
- इस व्रत से सौभाग्य, सुख-शांति और दाम्पत्य जीवन में सुधार होता है।
- यह व्रत शुक्र ग्रह संबंधी दोषों को दूर करने के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
7. शनि प्रदोष:
- शनिवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष कहा जाता है।
- इस व्रत से शनि ग्रह की दशा-अंतर्दशा के प्रभावों को कम किया जा सकता है।
- यह व्रत न्याय, नीति और कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
Note – प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक सरल उपाय है। वार के अनुसार प्रदोष व्रत का महत्व भी भिन्न होता है। आप अपनी आवश्यकता और इच्छा अनुसार वार का चयन करके प्रदोष व्रत रख सकते हैं।
प्रदोष व्रत का उद्यापन:
प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत महीने में दो बार, त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। 11 या 26 प्रदोष व्रत रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही किया जाना चाहिए।
उद्यापन की विधि:
- एक दिन पहले:
- भगवान गणेश की पूजा करें।
- पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण करें।
- उद्यापन का दिन:
- प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार करें।
- ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन करें।
- हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग करें।
- हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती करें और शान्ति पाठ करें।
- दो ब्रह्माणों को भोजन कराएं और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।
उद्यापन के महत्व:
- व्रत का फल पूर्ण रूप से प्राप्त होता है।
- मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
- नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव कम होता है।
हे महादेव! हमें अपनी शरण में ले लीजिये!
प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने का एक अचूक उपाय है! आइए, इस महीने प्रदोष व्रत करके अपनी सभी मनोकामनाएं पूरी करें।
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