श्री सीता आरती (Shree Sita Aarti): जानकी माता की दिव्य स्तुति
नमस्कार दोस्तों! माता सीता भक्ति, करुणा और शक्ति की प्रतीक हैं। उनकी पवित्र आरती एक श्रद्धापूर्ण भजन है जो उनकी दिव्यता और अनुग्रह का गुणगान करता है। इस ब्लॉग में, हम श्री सीता आरती के महत्व, पूजा विधि, और इस पवित्र अनुष्ठान के पीछे की कथाओं को जानेंगे।
श्री सीता आरती का महत्व
- माता सीता का आशीर्वाद: सीता आरती करने से माता का आशीर्वाद मिलता है, जो भक्तों के जीवन में शांति, प्रेम और संतोष लाता है।
- मन की शुद्धि: श्री सीता आरती का गायन हृदय को शुद्ध करता है, नकारात्मक विचारों को दूर करता है, और भक्ति-भावना को बढ़ाता है।
- संकटों से मुक्ति: माना जाता है कि माता सीता की भक्ति से भक्तों को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है।
- मनोकामनाओं की पूर्ति: सीता आरती से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पूजन सामग्री
श्री सीता आरती के लिए, आपको इन आवश्यक सामग्रियों की आवश्यकता होगी:
- माता सीता की प्रतिमा या तस्वीर: एक सुंदर प्रतिमा या माता सीता जी का चित्र पूजा स्थल के केंद्र में रखें।
- दीपक और तेल/घी: मिट्टी का दिया या कोई अन्य दीपक लें और उसमें घी या तेल भरें। बाती के लिए रूई का प्रयोग करें।
- अगरबत्ती या धूप: सुगंधित अगरबत्तियां या धूप पूजा में पवित्र वातावरण बनाने में मदद करते हैं।
- फूल: पूजा में माता सीता को ताज़े और सुगंधित फूल अर्पित करें, जैसे कि गुलाब, कमल, गेंदा इत्यादि।
- फल और मिठाई (प्रसाद): अपने सामर्थ्य अनुसार ताजे फल व मिठाई माता सीता को अर्पित करें।
- चंदन, रोली, सिंदूर: सुगंधित चंदन, रोली (कुमकुम) और सिंदूर से माता सीता की प्रतिमा या तस्वीर का तिलक करें।
- कपूर: आरती के समापन पर कपूर जलाएं। इसकी शुद्ध सुगंध वातावरण को भक्तिमय बनाती है।
- जल पात्र: पूजा में तांबे या पीतल के पात्र में शुद्ध जल अवश्य रखें।
- आसन: पूजा के समय एक स्वच्छ, ऊनी या कुशा का आसन प्रयोग में लें।
अन्य वैकल्पिक सामग्री:
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से तैयार पंचामृत को किसी छोटे पात्र में रख सकते हैं।
- पान के पत्ते और सुपारी: प्रसाद के साथ पान के पत्ते और सुपारी भी रखना शुभ माना जाता है।
- गंगाजल: यदि उपलब्ध हो तो थोड़ा गंगाजल पूजा स्थल पर रखें।
टीप: पूजा में सबसे आवश्यक है श्रद्धा और भक्ति। भले ही सभी सामग्री उपलब्ध न हो, साफ मन और सच्ची भावना से की गयी पूजा अवश्य ही फलदायी होती है।
पूजा विधि
- सबसे पहले एक स्वच्छ आसन पर बैठें।
- माता सीता की मूर्ति या तस्वीर को अपने सामने स्थापित करें।
- घी का दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- माता सीता को पुष्प, अक्षत, रोली, सिंदूर, चंदन अर्पित करें।
- शुद्ध मन से श्री सीता आरती का पाठ करें।
- आरती के बाद माता सीता को प्रसाद अर्पित करें।
श्री सीता आरती
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
जगत जननी जग की विस्तारिणी,
नित्य सत्य साकेत विहारिणी,
परम दयामयी दिनोधारिणी,
सीता मैया भक्तन हितकारी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
सती श्रोमणि पति हित कारिणी,
पति सेवा वित्त वन वन चारिणी,
पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,
त्याग धर्म मूर्ति धरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
विमल कीर्ति सब लोकन छाई,
नाम लेत पवन मति आई,
सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई,
शरणागत जन भय हरी की ॥
आरती श्री जनक दुलारी की ।
सीता जी रघुवर प्यारी की ॥
कथा
माता सीता का जन्म और स्वयंवर
- मिथिला के राजा जनक: मिथिला नरेश राजा जनक अपनी प्रजा के लिए एक उत्तम कन्या की कामना करते थे। एक दिन, जब वे खेत जोत रहे थे, तो भूमि से एक कन्या का जन्म हुआ। उसका नाम जानकी रखा गया, जिसका अर्थ है “जनक की पुत्री”।
- सीता माता का स्वरूप: माता सीता को भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी माता का अवतार माना जाता है। वह अत्यंत सुंदर, ज्ञानवान और मायावी शक्तियों की स्वामिनी थीं।
- शिव धनुष: राजा जनक के पास भगवान शिव द्वारा प्रदत्त एक दिव्य धनुष था, जो अत्यंत भारी था। सीता के विवाह के लिए उन्होंने स्वयंवर की शर्त रखी – जो कोई शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा, उससे सीता का विवाह होगा।
- श्री राम का आगमन: अनेक राजा और योद्धा स्वयंवर में आए पर शिव धनुष को हिला भी नहीं पाए। तब मुनि विश्वामित्र के साथ अयोध्या के राजकुमार श्री राम और लक्ष्मण स्वयंवर में पहुंचे। श्री राम ने धनुष को उठाया और तोड़ दिया।
- विवाह और वनवास सीता और राम का दिव्य विवाह संपन्न हुआ। किन्तु, कैकेयी के वरदान के कारण श्री राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। सीता माता ने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए श्री राम के साथ वनवास जाना स्वीकार किया।
लंका में सीता हरण और रावण वध
- स्वर्ण मृग और पंचवटी: वनवास के दौरान, मायावी रावण की बहन शूर्पनखा को श्री राम पर मोह हो गया। श्री राम ने उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया, जिसने क्रोध में आकर शूर्पनखा के नाक-कान काट दिए। इससे भड़के रावण ने सीता के अपहरण की योजना बनाई। उसने मायावी स्वर्ण मृग को भेजा, जिसे देखकर माता सीता ने श्री राम से उसे लाने का आग्रह किया।
- लक्ष्मण रेखा: श्री राम स्वर्ण मृग को प्राप्त करने चले गए और लक्ष्मण को माता सीता की रक्षा के लिए कहा। सीता के अकेले होने का लाभ उठा कर रावण साधु के भेष में आया और भिक्षा मांगने के बहाने से लक्ष्मण रेखा को पार करवाकर सीता का हरण करके लंका ले गया।
- अशोक वाटिका में आश्रय: रावण ने सीता को अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा। उसने माता सीता से विवाह करने का प्रस्ताव दिया, जिसे माता ने ठुकरा दिया।
- हनुमान जी का लंका प्रवेश: श्री राम और लक्ष्मण को सीता की खोज में वानरी सेना का साथ मिला। हनुमान जी ने समुद्र को पार कर लंका में प्रवेश किया और अशोक वाटिका में माता सीता को श्री राम का संदेश दिया।
- राम-रावण युद्ध: श्री राम ने अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई की। भीषण युद्ध हुआ, जिसमें रावण और उसकी राक्षस सेना का अंत हुआ। श्री राम ने माता सीता को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए अग्नि परीक्षा देने को कहा।
अयोध्या वापसी और आदर्श
- सीता की अग्निपरीक्षा: सीता माता ने अग्नि में प्रवेश किया और सकुशल वापस लौट आयीं, जिससे उनकी पवित्रता प्रमाणित हुई।
- अयोध्या में राज्याभिषेक: श्री राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या वापस लौटे और श्री राम का राज्याभिषेक हुआ। माता सीता आदर्श पत्नी, नारी और त्याग की प्रतिमूर्ति बनकर जन-जन में पूजनीय हैं।
माता सीता के भक्तों की कहानियां
यहां कुछ वास्तविक कहानियां हैं:
- एक महिला:
एक महिला जो बच्चे पैदा करने में असमर्थ थी, ने नियमित रूप से श्री सीता आरती शुरू की। कुछ समय बाद, वह गर्भवती हो गई और माता सीता की कृपा से उसे एक स्वस्थ बच्चे का जन्म हुआ।
- एक छात्र:
एक छात्र जो अपनी परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा था, ने माता सीता आरती शुरू की। उसकी एकाग्रता और आत्मविश्वास में वृद्धि हुई और उसने अपनी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की।
श्री सीता आरती के लाभ
- मानसिक शांति मिलती है।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- धैर्य और संयम में वृद्धि होती है।
- जीवन में सफलता मिलती है।
- घर में सुख और समृद्धि आती है।
FAQs
- श्री सीता आरती करने का सबसे अच्छा समय क्या है?
- सुबह या शाम के समय आरती करना सबसे शुभ माना जाता है।
- क्या हम रोजाना श्री सीता आरती कर सकते हैं?
- जी हां, श्री सीता आरती रोजाना करने से अत्यंत लाभ होता है।
- सीता नवमी पर सीता आरती का विशेष महत्व है। क्यों?
- सीता नवमी माता सीता के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन सीता जी की पूजा से विशेष फल मिलता है।
- क्या सीता आरती से विशिष्ट मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं?
- जी हां, श्रद्धा और विश्वास के साथ की गई सीता आरती से मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। माता सीता अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनकी सभी शुभ इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
Conclusion
मुझे आशा है कि श्री सीता आरती के बारे में जानकारी आपको पसंद आयी होगी। माता सीता की कृपा से आपका जीवन धन्य हो!
0 टिप्पणियाँ