दयानंद सरस्वती जयंती: महान समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक (Swami Dayanand Saraswati)
महर्षि दयानंद सरस्वती: एक प्रेरक व्यक्तित्व
स्वामी दयानंद सरस्वती सिर्फ एक धार्मिक नेता नहीं थे। वह 19वीं सदी के भारत में एक महान समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक थे। दयानंद सरस्वती जयंती उनके सम्मान में मनाई जाती है।
स्वामी दयानंद सरस्वती का प्रारंभिक जीवन
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में गुजरात के टंकारा में हुआ था। बचपन में उनका नाम मूलशंकर तिवारी था। कम उम्र से ही, वह आध्यात्मिक सत्य की खोज में लग गए। समाज में प्रचलित रूढ़िवादी प्रथाओं, अंधविश्वासों और धार्मिक पाखंडों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने वेदों एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया।
आर्य समाज की स्थापना
वेदों की ओर लौटने और सामाजिक सुधार के उद्देश्य से 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज ने महिलाओं की शिक्षा, बाल विवाह के उन्मूलन और जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ने जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक सुधारों की वकालत की।
दयानंद सरस्वती का दर्शन और शिक्षाएं
स्वामी दयानंद सरस्वती के उपदेश वेदों की शिक्षाओं पर आधारित थे। उनकी कुछ प्रमुख शिक्षाएं हैं:
- एक ईश्वर में विश्वास: उन्होंने एक निराकार ईश्वर में विश्वास को बढ़ावा दिया।
- सामाजिक समानता: स्वामी जी ने सभी मनुष्यों की समानता पर बल दिया और जाति व्यवस्था का विरोध किया।
- शिक्षा का महत्व: वे शिक्षा, विशेषकर महिलाओं और वंचित वर्गों के लिए शिक्षा, के प्रबल समर्थक थे।
- विधवा पुनर्विवाह का समर्थन
दयानंद सरस्वती जयंती मनाने का तरीका
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी को दयानंद सरस्वती जयंती बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन के कुछ मुख्य आकर्षण हैं:
- आर्य समाज मंदिरों में विशेष सभाएं और यज्ञ
- स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन और शिक्षाओं पर प्रवचन
- दान और समाज सेवा गतिविधियां
निष्कर्ष
स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारतीय समाज के आधुनिकीकरण और इसमें व्याप्त सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए अथक प्रयास किया। दयानंद सरस्वती जयंती उनकी विरासत और उनके जीवन भर किए गए समाज सुधार कार्यों के प्रति सम्मान का उत्सव है।
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