तुलसी चालीसा (Tulasi Chalisa)
परिचय
नमस्कार! पवित्र तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय माना जाता है। भगवान विष्णु को तुलसी अत्यंत प्रिय है, और कहा जाता है कि तुलसी के बिना उनकी पूजा अधूरी है। तुलसी चालीसा इस अद्भुत पौधे के गुणगान, इसकी महिमा और आध्यात्मिक महत्व का उल्लेख करती है। आइए, तुलसी चालीसा के पाठ, इसके पीछे की कथा और इससे मिलने वाले अद्भुत लाभों को समझते हैं।
तुलसी चालीसा
॥ दोहा ॥
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी ।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुन खानी ॥श्री हरि शीश बिरजिनी, देहु अमर वर अम्ब ।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ॥
॥ चौपाई ॥
धन्य धन्य श्री तलसी माता ।
महिमा अगम सदा श्रुति गाता ॥
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी ।
हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी ॥
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो ।
तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ॥
हे भगवन्त कन्त मम होहू ।
दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ॥ ४ ॥
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी ।
दीन्हो श्राप कध पर आनी ॥
उस अयोग्य वर मांगन हारी ।
होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ॥
सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा ।
करहु वास तुहू नीचन धामा ॥
दियो वचन हरि तब तत्काला ।
सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला ॥ ८ ॥
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा ।
पुजिहौ आस वचन सत मोरा ॥
तब गोकुल मह गोप सुदामा ।
तासु भई तुलसी तू बामा ॥
कृष्ण रास लीला के माही ।
राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ॥
दियो श्राप तुलसिह तत्काला ।
नर लोकही तुम जन्महु बाला ॥ १२ ॥
यो गोप वह दानव राजा ।
शङ्ख चुड नामक शिर ताजा ॥
तुलसी भई तासु की नारी ।
परम सती गुण रूप अगारी ॥
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ ।
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ ॥
वृन्दा नाम भयो तुलसी को ।
असुर जलन्धर नाम पति को ॥ १६ ॥
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा ।
लीन्हा शंकर से संग्राम ॥
जब निज सैन्य सहित शिव हारे ।
मरही न तब हर हरिही पुकारे ॥
पतिव्रता वृन्दा थी नारी ।
कोऊ न सके पतिहि संहारी ॥
तब जलन्धर ही भेष बनाई ।
वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई ॥ २० ॥
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा ।
कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ॥
भयो जलन्धर कर संहारा ।
सुनी उर शोक उपारा ॥
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी ।
लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी ॥
जलन्धर जस हत्यो अभीता ।
सोई रावन तस हरिही सीता ॥ २४ ॥
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा ।
धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा ॥
यही कारण लही श्राप हमारा ।
होवे तनु पाषाण तुम्हारा ॥
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे ।
दियो श्राप बिना विचारे ॥
लख्यो न निज करतूती पति को ।
छलन चह्यो जब पारवती को ॥ २८ ॥
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा ।
जग मह तुलसी विटप अनूपा ॥
धग्व रूप हम शालिग्रामा ।
नदी गण्डकी बीच ललामा ॥
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं ।
सब सुख भोगी परम पद पईहै ॥
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा ।
अतिशय उठत शीश उर पीरा ॥ ३२ ॥
जो तुलसी दल हरि शिर धारत ।
सो सहस्त्र घट अमृत डारत ॥
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी ।
रोग दोष दुःख भंजनी हारी ॥
प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर ।
तुलसी राधा में नाही अन्तर ॥
व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा ।
बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ॥ ३६ ॥
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही ।
लहत मुक्ति जन संशय नाही ॥
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत ।
तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ॥
बसत निकट दुर्बासा धामा ।
जो प्रयास ते पूर्व ललामा ॥
पाठ करहि जो नित नर नारी ।
होही सुख भाषहि त्रिपुरारी ॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी ।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बन्ध्यहु नारी ॥
सकल दुःख दरिद्र हरि हार ह्वै परम प्रसन्न ।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ॥
लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम ।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ॥
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम ।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास ॥
तुलसी चालीसा का महत्व (Significance of Tulsi Chalisa)
- तुलसी को साक्षात देवी लक्ष्मी का रूप माना गया है। तुलसी चालीसा का पाठ करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
- कहते हैं तुलसी का पौधा जहां होता है, वहां नकारात्मकता नहीं रहती। तुलसी चालीसा का पाठ सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है।
- तुलसी चालीसा का नियमित पाठ करने से स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं, मन शांत होता है, और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
तुलसी चालीसा पाठ विधि (Procedure for Reciting Tulsi Chalisa)
- स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- तुलसी के पौधे के सामने बैठें और दीपक जलाएं।
- तुलसी माता को जल, फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें।
- एकाग्रचित्त होकर तुलसी चालीसा का पाठ करें।
- अंत में तुलसी जी की आरती करें।
तुलसी चालीसा कथा (The Story of Tulsi Chalisa)
पौराणिक कथा के अनुसार, वृंदा नामक एक राक्षस राज की पत्नी थीं, जो कि भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। उनके पति, जलंधर, अत्यंत शक्तिशाली थे। उनकी शक्ति का रहस्य उनकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म था। देवताओं को जलंधर से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर छल से वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग कर दिया।
जब वृंदा को इस छल का पता चला, तो उन्होंने भगवान विष्णु को शाप दिया कि वे पत्थर बन जाएंगे। भगवान विष्णु शालिग्राम के रूप में परिवर्तित हो गए। अपने पतिव्रता धर्म की अखंडता बनाए रखने के लिए, वृंदा ने जलती हुई चिता में सती हो गईं। उनकी राख से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। तबसे माना जाता है कि तुलसी के पत्ते के रूप में वृंदा हर दिन भगवान विष्णु को अर्पित होती हैं।
तुलसी चालीसा पाठ के लाभ (Benefits of Reciting Tulsi Chalisa)
- घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- धन-धान्य में वृद्धि होती है।
- आध्यात्मिक विकास होता है ।
- भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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