संत रविदास जयंती (Ravidas Jayanti) : एक अद्वितीय संत की यात्रा

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“रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच, नकर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच” – यह दोहा संत रविदास के विचारों को स्पष्ट करता है। उनके अनुसार, किसी व्यक्ति को उसकी जाति के आधार पर नीच नहीं माना जा सकता। व्यक्ति को नीच बनाने वाले उसके कर्म होते हैं। इसलिए, हमें हमेशा अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।

संत रविदास: एक परिचय

जैसे संसार का अंधेरा हरने के लिए सुबह का सूर्योदय होता है, उसी तरह समाज और व्यवस्था में बुराइयों को दूर करने के लिए धरती पर संत-महापुरूषों का अवतरण होता है। हर सदी, हर युग में मां भारती की पावन धरा पर कुछ ऐसे सपूत जन्मे हैं, जिन्होंने अपने विचारों से न सिर्फ़ दुनिया को राह दिखाई, बल्कि उनके पीछे पूरा संसार चला। विश्व प्रसिद्ध भारतीय संत-परंपरा के एक ऐसे ही अद्भुत नगीने हैं- संत रविदास, जिनके लिए उनका कर्म और परोपकार की भावना ही ईश्वर की सच्ची भक्ति थी।

रविदास जयंती: कब और क्यों मनाई जाती है?

कर्मयोगी संत रविदास जी की जयंती हर साल माघ मास की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है। इस साल उनकी जयंती 24 फरवरी, शनिवार को मनाई जायेगी। पूर्णिमा तिथि 23 फरवरी 2024 को 03:33 PM पर प्रारंभ होगी और 24 फरवरी 2024 को 05:59 PM पर समाप्त होगी।

रविदास जी के जन्म के बारे में एक दोहा प्रसिद्ध है- ‘चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पंदरास। दुखियों के कल्याण हित, प्रगटे श्री रविदास।।’ उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी काशी के गोवर्धनपुर गांव में माघ पूर्णिमा के दिन जन्मे रविदास की माता का नाम कलसा देवी और पिता का नाम संतोष दास था। कुछ जानकार हैं कि उनका जन्म सन् 1450 के आस-पास हुआ था। हालांकि इस बात पर आज तक काफ़ी मतभेद है।

रविदास जी के जीवन से जुड़े एक-दो नहीं बल्कि कई ऐसे प्रसंग है जो हमें अपना जीवन शांति और सद्भावना के साथ जीने की प्रेरणा देते हैं। संत रविदास जयंती के दिन उनके अनुयायी श्रद्धाभाव से पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और इसके बाद अपने गुरु, यानि रविदास जी के जीवन से जुड़ी कई प्रेण्णदायक व रोचक घटनाओं को याद करके उनसे सीख लेते हैं। ये दिन रविदास जी के अनुयायियों के लिए एक उत्सव जैसा होता है। इस दिन उनके जन्म स्थान पर लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ होती है और कई भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों में लोग रविदास जी के दोहे गाते हैं उनसे प्रेरणा लेते है, साथ ही भजन-कीर्तन आदि भी करते हैं।

रविदास जी संत कैसे बने

रविदास जी के संत बनने से जुड़ी एक प्रचलित कथा है। जिसके अनुसार- एक दिन की बात है जब रविदास जी अपने दोस्त के साथ खेल रहे थे। लेकिन अगले दिन जब वो खेलने के लिए उसी जगह पर पहुंचे तो उनका वो साथी नहीं आया। ऐसा हुआ तो रविदास जी उसे खोजने निकल पड़े। तभी उन्हें पता चला कि उनके उस दोस्त की मौत हो चुकी है। ये सुनते ही रविदास जी बहुत दुखी हुए और अपने दोस्त के शव के पास जाकर बोले, “उठो ये सोने का समय नहीं है, ये मेरे साथ खेलने का समय है। जैसे ही रविदास जी ने इतना कहा, उनका मृत साथी उठकर खड़ा हो गया।

मान्यता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रविदास जी को बचपन से ही कई अलौकिक शक्तियां प्राप्त थीं। इस दिन से ही लोग उनकी शक्तियों पर विश्वास करने लगे। समय के साथ रविदास जी भगवान राम और श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे, और धर्म कर्म राह पर चलते हुए वो संत बन गए।

गुरु रामानंद के शिष्य तो मीराबाई के गुरु थे रविदास

महात्मा रविदास, संत कबीर से ख़ासे प्रभावित थे और उन्हें आदर्श मानते थे। कबीरदास जी ने भी ‘संतन में रविदास’ कहकर उनके क़द का बखान किया है। हलांकि वे संपन्न परिवार से थे, लेकिन कबीरदास जी से प्रेरित होकर उन्होंने स्वामी रामानंद को अपना गुरु बनाया और अध्यात्म की राह पर चल पड़े।

इनकी साधना और भावुकता, सहजता से परमात्मा की सेवा में लीन रहना सिखाती है। शायद इसी कारण महान कृष्ण भक्त, कवियत्री व चित्तौड़ की रानी मीराबाई ने उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया, और कहा-

‘गुरु मिलिआ संत गुरु रविदास जी, दीन्ही ज्ञान की गुटकी।’

जाति-पांति के भेदभाव की खाई को पाटती ऐसी गुरु-शिष्य परंपरा इतिहास में अनूठी है।

कर्म को ही पूजा माने संत रविदास

चर्मकार कुल में पैदा हुए रविदास जी जूते बनाने का काम किया करते थे और ये कार्य वे बिना किसी मलाल के, पूरी लगन, मेहनत व खुशी के साथ करते थे। उनके लिए उनका कर्म किसी आराधना से कम नहीं था। उन्होंने हमेशा कहा कि कर्म ही धर्म है और इसी को अपनाकर वे अपने जीवन को सफल बनाते गए। उनके इसी विचार को आज भी उनके अनुयायी अपने जीवन में उत्तरदायित्वपूर्ण तरीके से लागू करते हैं।

संत रविदास जी के जीवन की यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि हमें अपने कर्मों को ही अपना धर्म मानना चाहिए और उसी के आधार पर अपना जीवन जीना चाहिए। उनके जीवन की यह यात्रा हमें यह भी सिखाती है कि हमें किसी को भी उसकी जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर नीच नहीं मानना चाहिए। हमें सभी को समानता के आधार पर देखना चाहिए/

रविदास जी के विचार और उनका समाज से संबंध

रविदास जी ने हमेशा समाज में व्याप्त जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। उन्होंने कहा था कि एक व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर मूल्यांकन किया जाना चाहिए, न कि उसकी जाति के आधार पर। उनके अनुसार, कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों के आधार पर उच्च या नीच होता है। इसलिए, हमें अपने कर्मों पर सदैव ध्यान देना चाहिए।

रविदास जी ने अपने जीवन में जो अद्वितीय कर्म किए, वे आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। उन्होंने हमें यह सिखाया कि हमें अपने कर्मों को ही अपना धर्म मानना चाहिए और उसी के आधार पर अपना जीवन जीना चाहिए। उनके जीवन की यह यात्रा हमें यह भी सिखाती है कि हमें किसी को भी उसकी जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर नीच नहीं मानना चाहिए। हमें सभी को समानता के आधार पर देखना चाहिए।

संत रविदास जी की यात्रा: एक निष्कर्ष

संत रविदास जी की जीवन यात्रा हमें यह सिखाती है कि हमें अपने कर्मों को ही अपना धर्म मानना चाहिए और उसी के आधार पर अपना जीवन जीना चाहिए। उनके जीवन की यह यात्रा हमें यह भी सिखाती है कि हमें किसी को भी उसकी जाति, धर्म या वर्ग के आधार पर नीच नहीं मानना चाहिए। हमें सभी को समानता के आधार पर देखना चाहिए। उनके इस विचारधारा ने न केवल उनके समय में, बल्कि आज के समय में भी लोगों को प्रभावित किया है। उनकी शिक्षाएं आज भी हमारे समाज के लिए महत्वपूर्ण हैं।

संत रविदास जी की जयंती हमें उनकी शिक्षाओं को याद दिलाती है और हमें उनके पथ पर चलने की प्रेरणा देती है। इस दिन हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने जीवन को उनकी शिक्षाओं के अनुसार जीने की कोशिश करनी चाहिए।


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